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________________ 555555555555555555555 अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार किसी भी एक व्रत को धारण कर सकता है एक करण, तीन योग से भी और दो करणं, तीन योग से भी। अणुव्रत की साधना में निरन्तर आगे बढ़ते हुए वह महाव्रती बन सकता है। आगार से अनगार और श्रावक से श्रमण बन सकता है। महाव्रत-धारण आध्यात्मिक साधना का सर्वोत्कृष्ट मार्ग है पर अणुव्रत की धारणा किसी भी देश-काल 21 में रहने वाले नागरिक का आदर्श है। महाव्रत में पापों से पूर्णतः बचा जाता है। है. अणव्रत में अंशतः। महाव्रत सर्वविरति व्रत है. अणव्रत देशविरति व्रत है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ अहिंसा आदि जो मूल पांच अणुव्रत हैं, जिन्हें महर्षि पतंजलि ने "यम" कहा है, बौद्ध धर्म में जो पंचशील भी कहे गये हैं, उनके स्वरूप में युगानुरूप परिवर्तन आता रहा है। कृषि - प्रधान युग में हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह आदि के अलग मानदण्ड रहे होंगे 51 पर आज जब हम औद्योगिक क्रांति के बाद अन्तरिक्ष युग में प्रवेश कर गये हैं तो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह आदि के रूप अत्यधिक सूक्ष्म और बारीक हो गये हैं। अतः अणुव्रतों की परिपालना में विशेष सावधानी की आवश्यकता है। इन व्रतों के जो अतिचार हैं, जिनसे बचने के लिए व्रतधारी को बराबर सावधान किया गया है, उनकी वर्तमान संदर्भ में नई व्याख्या अभीष्ट - है। अहिंसा अणुव्रत में बंधन. वध, अतिभार, अन्न-पानी का विछोह का जो F1 संकेत है उसे व्यापक अर्थ में लेना होगा। हम किसी की स्वतंत्रता में - बाधा न डालें, मानसिक और वाचिक रूप से किसी को कष्ट न पहुंचाये, समाज में ऐसे नियम न बनायें, जो सामान्य व्यक्ति के लिए भारभूत हों. ऐसी व्यवस्था का समर्थन न करें, जिसमें किसी की रोटी-रोजी या खान-पान छिनता हो। आज चारों ओर क्रूरता और संवेदनहीनता दिखाई देती है। अहिंसा-अणुव्रती को अहिंसा का जो विधायक रूप है-प्रेम, मैत्री, सेवा, उसे बढ़ावा देना चाहिए, सर्वहितकारी समाज-सेवाओं में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए। मांसाहार के खिलाफ आंदोलन छेड़कर सात्विक आहार-विहार के रूप में शाकाहार का प्रचार करना चाहिए। आहार-विहार में सात्विकता, रात्रि भोज के त्याग की नियमबद्धता और सप्त व्यसनों के त्याग की अनिवार्यता बनी रहे, इस ओर विशेष प्रयत्न अपेक्षित है। पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति आदि को जैन तीर्थंकरों ने सजीव बताया है। इनके उपयोग में विवेक बना रहे, आवश्यकताओं के अनुरूप इनका दोहन हो, दोहन के स्थान पर शोषण न - प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 491 मा 9595959595959
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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