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________________ 595555555555555555555555555 धर्मों में भी सप्तमंगी की प्रक्रिया की योजना की गयी है। * IGLELE द्वितीय परिच्छेद-इस परिच्छेद में 24 से 36 तक 13 कारिकाओं की व्याख्या प्रस्तुत की गयी है। सर्वप्रथम यह बतलाया गया है कि वस्तु को सर्वथा एक मानने पर कारकमेद, क्रियाभेद, पुण्य-पापरूप कर्मद्वैत, सुख-दुःखरूप फलद्वैत, इहलोक-परलोकरूप लोकद्वैत यह सब नहीं बन सकेगा। हेतु से अद्वैत की सिद्धि मानने पर हेतु और साध्य का द्वैत विद्या और अविद्या का द्वैत तथा बन्ध और मोक्ष का द्वैत हो जायेगा। और हेतु के बिना अद्वैत की सिद्धि मानने पर वचनमात्र से ही सब की इष्टसिद्धि हो जायेगी। इसके बाद सर्वथा भेदैकान्तवादी वैशेषिकों के मत की समालोचना की गयी है। तदनन्तर बौद्धों के निरन्वय क्षणिकवाद की समालोचना करते हए यह बतलाया गया है कि अनेक क्षणों में एकत्व के न मानने पर सन्तान. समदाय, साधर्म्य और प्रेत्यभाव नहीं बन सकते हैं। इसी प्रकार बौद्धों के अन्यापोहवाद का निराकरण युक्तिपूर्वक किया गया है। शब्दों का वाच्य न केवल सामान्य है और न विशेष किन्तु सामान्य विशेषात्मक वस्तु ही शब्द का वाच्य होती है। भेद और अभेद दोनों वास्तविक हैं.काल्पनिक नहीं. क्योंकि वे प्रमाण के विषय होते हैं। तृतीय परिच्छेद-इस परिच्छेद में 37 से 60 तक 24 कारिकाओं की व्याख्या प्रस्तुत की गयी है। सर्वप्रथम सांख्यदर्शन के नित्यत्वैकान्त की समालोचना में कहा गया है कि सर्वथा नित्यपक्ष में कारकों का अभाव होने से किसी भी प्रकार की विक्रिया नहीं बन सकती है। प्रमाण तथा प्रमाण का फल भी नहीं बन सकते हैं। यहाँ सांख्यों के सत्कार्यवाद का निराकरण युक्तिपूर्वक किया गया है। इसी प्रकार बौद्धों के असत्कार्यवाद का निराकरण भी प्रमाणपूर्वक किया गया है। यदि कार्य सर्वथा असत् है तो आकाशपुष्प के समान वह उत्पन्न नहीं हो सकता है, और कार्य की उत्पत्ति में कोई विश्वास भी नहीं किया जा सकता है। क्षणिकैकान्त पक्ष में भी प्रेत्यभाव आदि का असंभव है। इस पक्ष में कृतनाश और अकृतागम का प्रसंग प्राप्त होता है। नाश को निर्हेतुक मानने में दोष, संवृतिरूप स्कन्धसन्तति में स्थिति आदि का निषेध, तत्त्व की अवाच्यता का निराकरण, एक ही वस्तु में नित्यत्व और क्षणिकत्व की निर्दोष व्यवस्था, वस्तु में उत्पादादि त्रय की व्यवस्था आदि विषयों पर यहाँ विस्तृत विचार किया गया है। चतुर्थ परिच्छेद-इस परिच्छेद में 61 से 72 तक 12 कारिकाओं 5 । 1482 ELETET प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ । 4545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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