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________________ 5955555555555555555555 4 तरह कोमल और सुगंधित बनता है। "आभामंडल" (प्रभामंडल) शुक्ल लेश्या ' अर्थात् उत्तम शुभ भावनाओं का प्रतीक है। जब साधक के समस्त मिथ्यात्व दर हो जाते हैं. सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है और तीर्थंकर भगवान स्वयं दर्पण के समान पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर दमकने लगते हैं-पारदर्शिता प्राप्त कर लेते हैं तब उनके परमौदारिक दिव्य देह से अलौकिक किरणों की प्रतिभा का मंडल दमकने लगता है। इस मंडल में जीव त्रिलोक के दर्शन करता है-स्वयं के (आत्मा के) रूप को निहारता है और निरंतर निर्मलता-प्राप्ति में लग जाता है। "दिव्यध्वनि" प्रातिहार्य भगवान केवली की ध्वनि का प्रतीक है। यह वचनामृत नवतत्त्व, षद्रव्य आदि धर्म के स्वरूपों को प्रगट करता है और TE इससे मुमुक्षु सच्चे आनंद का सुख प्राप्त करता है। भक्तामरस्तोत्र में आचार्य ने प्रथम प्रतीकों द्वारा आदिनाथ प्रभु के रूप, गुण प्रस्तुत किये। तदुपरांत उनके अष्ट प्रातिहार्यों के प्रतीकों द्वारा उनकी महिमा का गुणगान प्रस्तुत किया और अंत में उनके प्रभाव आदि की महत्ता-शक्ति को प्रतीकों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। 'मदोन्मत्त हाथी' भी भगवान के भक्त के समक्ष वशीभूत हो जाता है। यहाँ मदोन्मत्त-क्रोधी हाथी मन के विकारों का प्रतीक है। भक्त सम्यग्दृष्टि का प्रतीक है। सम्यग्दृष्टि, सत्त्वगुण के धारक की दृष्टि के समक्ष हाथी जैसा शक्तिशाली भी पराजित हो जाता है। यहाँ सदवृत्ति की असवृत्ति पर विजय - का निर्देश है। 'सिंह' जो कि हाथी के गंडस्थल को क्षत-विक्षत कर सकता है वह भी आराधना में दृढ़ व्यक्ति के सामने परास्त हो जाता है। यहाँ 'सिंह' - हिंसा का प्रतीक है और आराधक अहिंसा-दृढ़ता का प्रतीक है। इस श्लोक में हिंसा पर अहिंसा की विजय प्रतिष्ठित कर अहिंसा की महिमा एवं शक्ति TE की स्थापना की है। प्रलयाग्नि' का वर्णन कवि बड़े ही उग्र स्वरूप में करता है। इस प्रलयाग्नि में समस्त संसार को भस्म करने की तीव्रता-उष्णता है। - परंतु, आदिनाथ प्रभु के नाम का स्मरण शीतल जल का कार्य करता है, और अग्नि को शांत कर देता है। प्रलयाग्नि क्रोध भाव का प्रतीक है और प्रभूनाम स्मरण शीतल जल का प्रतीक है। क्रोध का शमन शांति-शीतलता से ही हो TE सकता है। यहाँ भी आचार्य अहिंसा का ही समर्थन करते हैं। मन की शांति TE ही दृढ़ता प्रदान कर सकती है। सर्प और उसकी विकरालता उसका ज़हर आदि काम-क्रोध-कषाय के प्रतीक हैं। जबकि सत्यधर्म की श्रद्धा और देव-शास्त्र-गुरु की आराधना जड़ी-बूटी औषधि है जो सर्पदंश के ज़हर को 51 दूर करती है। साँप के डर से भी निर्भय बनाती है। यहाँ मनुष्य के मन में । - - -1476 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - 35999965555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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