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________________ 15454545454545454545454545454545 हैं। वीतराग देव तो चन्द्रकिरण से उज्ज्वल, निर्मल और क्षीरोदधि से भरे जल से पवित्र हैं जबकि सरागी देव क्षारजल' जैसे हैं-संसारवृद्धि कराने वाले ॥ हैं। कौन 'क्षीर को छोड़ क्षार' को ग्रहण करेगा? इस प्रकार आचार्य । 4. क्षीरोदधि' और 'क्षारोदधि के प्रतीकों द्वारा तुलना प्रस्तुत करते हुए दोनों 4 IF के गुणों का अंतर स्पष्ट करते हैं। समाधि में दृढ़ होने के लिये वे अटल - ॥ सुमेरु पर्वत के प्रतीक का प्रयोग करते हैं। जैसे प्रलयंकारी झंझा भी सुमेरु को डिगा नहीं सकता वैसे ही कामवासना रूपी भौतिक सौन्दर्य दृढ़ तपस्वी को चलित नहीं कर पाता। इसी प्रकार केवली भगवान का ज्ञान निधूम ज्योति' : का परम प्रकाशित रूप है। यह स्थिरज्ञान (केवलज्ञान) की धवल LE ज्योति किसी भी प्रकार के संशय, कषाय विकार की आंधी में भी नहीं बुझती। - ज्ञान भी 'धूम' अर्थात् संशय आदि से रहित है। ज्योति' प्रकाश का प्रतीक एवं 'सत्यदर्शन' का प्रतीक है। इन दो श्लोकों में सुमेरुपर्वत एवं युक्त दीपक साधना-ज्ञान के अचल भावों के प्रतीक हैं। झंझावात आदि संसार की वासना के प्रतीक हैं। वासना पर वैराग्य की विजय का निर्देश यहाँ हुआ 9 है। सत्य भी है-जो भौतिक सुखों में भी आत्मा के साथ तादात्म्य स्थापित 51 कर लेते हैं वे ही महावीर या मक्त बन सकते हैं। कवि ने आदिनाथ भगवान की वंदना बुद्ध, शंकर, ब्रह्मा एवं विष्णु जैसे विशेषणों का प्रयोग कर की है, पर, उनका आशय अवतारी देव नहीं हैं। जब वे बुद्ध शब्द का प्रयोग करते हैं तब उनका अभिप्राय केवलज्ञान रूपी LE बोध जिसे प्राप्त है ऐसे अरिहंत भगवान के ही गुणों का अंकन करना है। 'शिव' शब्द शिवत्व अर्थात् कल्याण करने के संदर्भ में एवं आत्मा को पवित्र बनाने F के परिप्रेक्ष्य में प्रयुक्त किया गया है। 'ब्रह्मा' प्रतीक है उस जिनेश्वर का जो - मोक्षमार्ग को प्रशस्त करने वाले हैं। विष्णु' अर्थात् पुरुषोत्तम । यहाँ विष्णु की कल्पना ऐसे सिद्ध पुरुष से की गई है जो सर्वपुरुषों में उत्तम मोक्षमार्ग का प्रणेता है। दर्शन-ज्ञान-चारित्र से दृढ है एवं आत्मा को जानने वाला है। इस शब्द के द्वारा भी उत्तम पुरुष अर्थात् अरिहंत भगवान की ही कल्पना या आराधना की है। E भगवान जिनेन्द्र के जो आठ प्रतिहार्य हैं वे भी प्रतीक रूप ही हैं। ये वा प्रातिहार्य सत् की असत् पर विजय एवं संसार पर वैराग्य की विजय के ही LSLSLSLSLSLSLSLSLS45 सूचक हैं। - प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 51474 45454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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