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________________ 449 450 451 454545454545454 असुरों के साथ युद्ध की खाज रखने वाले भुजदण्ड की मण्डली से अनायास 1 - उठाए हुए कैलाशपर्वत के द्वारा जिसका पराक्रम कण्ठोक्त था और प्रताप के भय से नमस्कार करने वाले अनेक विद्याधरों के मुकुटरूप मणिमय 4 पादचौकियों पर जिनके चरण लोट रहे थे, ऐसा रावण भी स्नेहातिरेक से TE सीता के विषय में विवश हो रण के अग्रभाग में लक्ष्मण को मारने के लिये । छोड़े हुए चक्ररत्न से मृत्यु को प्राप्त हुआ। इस लोक और परलोक सम्बन्धी हित को नष्ट करने वाली तष्णा और क्रोध में भेद नहीं है धन से - अन्धे मनुष्य सत्पथ को न सुनते हैं, न समझते हैं, न उस पर चलते हैं और 47 चलते हुए भी कार्य की पूर्णता को नहीं प्राप्त कर सकते हैं। संसार में एक 51 ही पदार्थ के विषय में इच्छा के कारण स्पर्धा सभी के बढ़ती है। किन्त मात्सर्य : से सभी नष्ट हो जाता है। ईर्ष्या करने वाले व्यक्तियों को क्या-क्या खोटे कार्य रुचिकर नहीं लगते हैं अर्थात् सभी लगते हैं। मत्सरयुक्त पुरुषों के वस्तु के यथार्थस्वरूप का विचार नहीं होता है। प्राणियों में ममत्वबुद्धि से TE 1 उत्पन्न हुआ मोह विशेष होता है इसके अतिरिक्त पंचेन्द्रियों से उत्पन्न मोह । LF एक दूसरे से बढ़कर होता है। मोह का त्याग करना चाहिए, क्योंकि थोड़ा LE F- भी मोह देहधारियों की आस्था को अस्थान (अयोग्यस्थान) में गिरा देता है। 14. जागृति-राजा को अपने हृदय का भी विश्वास नहीं करना चाहिए; फिर दूसरों की तो बात ही क्या है? स्वभाव से सरल अपने हृदय से उत्पन्न सब लोगों पर विश्वास करने की आदत समस्त अनर्थों का मूल हैं। राजा लोग नटों के समान मंत्रियों के ऊपर अपने विश्वास का अभिनय करते हैं, परन्तु हृदय से उन पर विश्वास नहीं करते हैं; क्योंकि चिरकाल के परिचय से बढ़े जी हुए विश्वास के कारण मंत्रियों पर राज्य का भार रखने वाले राजा उन्हीं मंत्रियों द्वारा मारे गए हैं, ऐसी लोककथायें सुनने में आती हैं"। सब उपायों को करने - में उद्यत सबको शत्रु की कपटवृत्ति से प्राप्त होने वाले अपने विनाश के उपाय का सदा निराकरण करते रहना चाहिए। शत्रुओं के वश में पड़ी स्त्रियाँ और - पुरुष निगृह्य (तिरस्कार के पात्र) होते हैं कितने ही लोग खाना, सोना, पीना और वस्त्र धारण करते समय कष्ट उत्पन्न करने वाला विष मिलाकर मारने का यत्न कर सकते है। 2.नियमपूर्वक कार्य करना-राजा को रात्रि और दिन का विभाग करके नियत कार्यों को करना चाहिए। क्योंकि समय निकल जाने पर करने योग्य कार्य - बिगड़ जाता है। राज्य को प्राप्त कर श्रेष्ठ राजा समस्त गुणों से सुशोभित होता है। F1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ नामानानानानानानानानानाना FIFIEIFIEFIFIFIFIFIFIFIFIFIFIEI
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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