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________________ $575545454545454545454545454545 卐 में और रक्षा की अपेक्षा उसके नष्ट होने में प्राणियों को हजार गुना क्लेश' होता है। 'स्वदेशगतः शशः कुञ्जरातिशायी। -ग. चि.. द्वि. लम्म पृ. 127 अपने स्थान पर स्थित खरगोश भी हाथी को पराजित कर देता है। अचिन्त्यानुभावं हि भवितव्यम्।। -ग.चि., चतु, लम्भ पृ. 208 भवितव्य की महिमा अचिन्त्य है। विकारहेतौ सति मनश्चेद्विक्रियते विद्यास्फूर्तिः कर्मार्थका।। -ग. चि., सप्तमलम्भ पृ. 284 विकार का कारण मिलने पर यदि मन विकृत हो जाता है तो फिर - विद्या की स्फूर्ति किसलिए है? जीवतां जगति किं नाम न श्रव्यं श्रोतव्यम।। -ग. चि.. अष्टम लम्भ, पृ. 308 संसार में जीवित रहने वाले प्राणियों को क्या नहीं सुनने को प्राप्त - नहीं होता है? परिपन्थिजनगृह्याः खलु निगृह्माः पुरंध्रयः पुमांसश्च। -ग. चि.. अष्टम लम्भ पृ. 312 शत्रुजन के वश में पड़ी स्त्रियाँ और पुरुष वास्तव में निगृह्य होते हैं। उग्रतरव्यसनवाधिवर्द्धनेन्दुः खलु वार्द्धकं च।। -ग. चि. नवम लम्भ पृ. 328 बुढ़ापा अत्यन्त तीव्र दुःखरूपी सागर को बढ़ाने के लिए चन्द्रमा है। जीवानामुदय एव न केवलं जीवितमपि बलवदधीनम् ।। ___ -ग. चि. लम्भ 11 पृ. 406 । न केवल जीवों का अभ्युदय ही बलवान के अधीन है, अपितु उनका जीवन भी बलवान के अधीन है। तत्त्वज्ञानविवेकतो विमलीकृतहृदयाः कृतिनिः खलु जगति दुष्कर कर्मकारिणो भवन्ति ।। -ग. चि., लम्भ 11 पृ. 407 तत्त्वज्ञान के विवेक से जिनके हृदय निर्मल हो गए हैं, ऐसे भाग्यशाली कुशल मनुष्य ही संसार में दुष्कर कठिन कार्य करने वाले होते हैं। स्नेहप्रयोगमनपेक्ष्य दशां च पात्रं धुन्वंस्तमांसि सुजनापररत्नदीपः। 1 मार्गप्रकाशनकृते यदि नामविष्यत्सन्मार्गगामि जनता खलु नाभविष्यत्।। -गद्य चिन्तामणि, 1.7 45145146145454545454545454545454545454545 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 425 $4154155454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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