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________________ 5555555555555555 भी अनार्द्र भाव-निर्दय अभिप्राय से युक्त हैं)। जड संसक्त-जलसंसक्त जल से सहित होने पर भी ऊष्मल स्वभाव-गरम स्वभाव को धारण करने वाले हैं। (पक्ष में- जडसंसक्त- मूर्खजनों के संसर्ग में रहकर भी ऊष्मल स्वभाव- तेजस्वी प्रकृति के धारक हैं)। सुलोचन उत्तम नेत्रों से युक्त होने पर भी अदूरदर्शी-दूर तक नहीं देखने वाले हैं (पक्ष में सुलोचन-सुन्दर नेत्रों से युक्त होने पर भी अदूरदर्शी-दूर तक नहीं देखने वाले हैं (पक्ष में सुलोचन - सुन्दर नेत्रों से युक्त होने पर भी अदूरदर्शी भविष्य के विचार से रहित हैं)। सुपाद-उत्तम पैरों से युक्त होने पर भी स्खलित गति लड़खड़ाती चाल से सहित हैं (पक्ष में सुपाद-उत्तम पैरों से) सहित होकर भी स्खलित गति-पतित दशा से युक्त हैं। सुगोत्र- उत्तम नाम के धारक होकर भी गोत्रोन्मूलि-नाम का उन्मूलन करने वाले हैं (पक्ष में सुगोत्र उच्चकुल में उत्पन्न होकर भी गोत्रोन्मूली- अपने कुल को नष्ट करने वाले हैं)। सुदण्ड-अच्छे दण्ड से युक्त होकर भी कुटिल दण्ड-टेढ़े दण्ड से युक्त हैं (पक्ष में सुदण्ड- अच्छी सेना से युक्त होकर भी कुटिलदण्ड- भयंकर सजा देने वाले हैं)। सिंहासन पर स्थित होने पर भी पतित-नीचे पड़े हुए हैं ( पक्ष में-सिंहासनारूढ़ होने पर भी पतित-भ्रष्ट हैं)। हिंसाप्रधान विधि-हिंसाप्रधान काय-हिंसापूर्ण यज्ञादि से सहित होने पर भी मीमांसाबहिष्कृत - मीमांसक दर्शन सम्मत मीमांसा से रहित हैं (पक्ष में हिंसापूर्ण कार्य करने वाले होकर मीमांसा-विचार शक्ति से रहित हैं) और ऐश्वर्य में तत्पर होकर भी न्यायपराङ्मुख अत्यधिक आय से विमुख हैं (पक्ष में ऐश्वर्य प्रधान होकर भी न्यायपराङ्मुख योग्य निर्णय से विमुख रहते हैं-उचित न्याय नहीं करते हैं। वादीभसिंह की उपमाओं और उत्प्रेक्षाओं से पूरी गद्यचिन्तामणि व्याप्त है । उत्प्रेक्षा में वादीभसिंह बहुत कुशल हैं। उनकी कल्पना शक्ति प्रत्येक चित्रण को उत्प्रेक्षा रूपी परिधान पहिनाती है। किसी व्यक्ति या दृश्य का चित्रण करते समय एक के बाद एक उत्प्रेक्षा या उपमा प्रस्तुत करते चले जाते हैं। उदाहरणार्थ राजपुरी के विद्यामण्डप का वर्णन करते हुए वे अनेक उत्प्रेक्षाओं का सहारा लेते हैं मरकतमणिमयाजिरपृष्ठ प्रसारितैर्भौक्तिकवालुकाजालैः प्रतिफलितमिव सतारं तारापथं दर्शयतः स्फटिक शित्नघटित बलिपीठोपकण्ठ प्रतिष्ठित महार्हमणिमयमानस्तम्भस्य, संस्तवव्याजेन शब्दमयमिव सर्वं जगत्कुर्वता 5555555 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 421 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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