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________________ 45454545454545454545454545454545 51 परसंतापविधिपरा, कौस्तुभमणि साधारण प्रभवापि पुरुषोत्तम द्वेषिणी, पापद्धिरियं LE पापद्धौं, वेश्येयं पारवश्य कृतौ, द्यूतानुसंधिरियमति संधाने मृगतृष्णिकेयं तृष्णायाम्। अलङ्कारों का प्रयोग वादीमसिंह ने प्रचुरता से किया है। उन्होंने शब्दालकार और अर्थालकार दोनों का प्रयोग किया है। उनके काव्य में अनुप्रास सर्वत्र व्याप्त है। जैसे'क्रीडावसाने च बलवदनिलचल किसलयमुल्लासिवेल्लल्लतालास्य लालितेऽ. भिनवपरागपटल स्विन्नपुनागमञ्जुमञ्जरीजालं जल्पाकमधुकरनिकरझंकार मुखरे......। -गद्य चि. लम्भं 11 पृ. 403 कहीं कहीं वादीभसिंह उपमाओं की झड़ी लगा देते हैं-सा चेन्न स्यादव्रीहिखण्डनायास इव तण्डुलत्यागिनः, कूपखनन प्रयास इव नीरनिरपेक्षिणः, कर्णशुक्तिरिव शास्त्रशुश्रूषापराङ् मुखस्य द्रविणार्जनक्लेश इव । वितरणगुणानभिज्ञस्य, तपस्याश्रम इव नैरात्म्यवादिनः, शिरोभारधारण श्रान्तिरिव जिनेश्वर चरणप्रणाम बहुमति बहिष्कृतस्य, प्रव्रज्या प्रारम्भ इवेन्द्रियदासस्य 1. विफलः सकलोऽप्ययं प्रयासः स्यात्। -ग. चि., द्वितीय लम्भ पृ. 102 यदि आत्मतत्त्व सिद्धि नहीं हुई तो चावलों का त्याग करने वाले के TE धान कूटने के प्रयास के समान, जल से निरपेक्ष मनुष्य के कुआँ खोदने के प्रयास के समान, शास्त्र श्रवण करने की इच्छा से विमुख मनुष्य के कणादकी उक्ति-न्याय शास्त्र के अध्ययनजन्य श्रम के समान, दानगुण से अनभिज्ञ मनुष्य के धनोपार्जन के क्लेश के समान, अनात्मवादी के तपस्या के श्रम के समान, जिनेन्द्र भगवान के चरणों में प्रणाम करने की सदबुद्धि से रहित मनुष्य के शिर का भार धारण करने से उत्पन्न थकावट के समान और इन्द्रियों के दास के दीक्षा प्रारम्भ के समान यह प्रयास व्यर्थ है। कवि, कुमार जीवन्धर का वर्णन करता हुआ कहता है-वे अवस्था के 45 अनुकूल वचन कहने में नट के समान, संभोगसम्बन्धी चतुराई के प्रकट करने में विट के समान, वशीकरण के कार्य में वशीकरण मंत्र के समान, इच्छानुसार । प्रवृत्ति करने में शिष्य के समान, विरह के सहन न करने में चक्रवाक के समान । -ग.चि. षष्ठलम्भ पृ. 243 4 राजाओं के स्वरूप वर्णन के प्रसङ्ग में विरोधाभास की छटा दर्शनीय है. हि सत्यपि राजभावे सदिभन सेव्यते, जीवत्यपि गोपतित्वे वृषशब्दं न 5 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ FELECानानानानाना 151EE LELE 419 तार
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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