SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 465
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - - I CICIPILI-1-1-1-1- LI 1 स्थिति का चित्रण करते हुए वादीनसिंह ने माता विजया के मुख से कहलाया हैLF अशेषजनहर्षतुमुलखसंकुलं राजकुलं अवलोक्येत, स त्वमारसद LE - शिवशिवावक्त्र- कुहरविस्फुरदन- लकणजर्जर तमसि। ग. चि. द्वितीय लम्भ पृ. 73 अर्थात् जो समस्त मनुष्यों की जोरदार हर्षध्वनि से व्याप्त होता, ऐसा राजकुल दिखाई देता, वह आज उस श्मसान में किसी तरह उत्पन्न हुआ है, जहाँ सब ओर शब्द करने वाली अमाङ्गलिक शृगालियों की मुखकन्दरा.से निकलने वाले अग्निकणों से अन्धकार जर्जर हो रहा है। किरातार्जुनीयम् के अशिवः शिवारुतैः तथा गद्यचिन्तमणि के आरसदशिवशिवा में साम्य है। वादीनसिंह और माव-शिशुपालवध के कर्ता महाकवि माघ के समय के विषय में विद्वानों में मतभेद है। जैकोबी उनका काल छठी शताब्दी का मध्य, आर सी. दत्त बारहवीं शताब्दी तथा प्रो. पाठक अष्टम शताब्दी का अन्तिम भाग TE मानते हैं। माघ के शिशुपाल वध के एक पद्य तथा गद्यचिन्तामणि के एक - वर्णन में पर्याप्त साम्य है रणदिनराधट्टनया नमस्वतः पृथग्विनिमः श्रुतिमण्डलः स्वरः। स्कुटीमवग्रामविशेषमूर्छनामवेक्षमाणं महती मुहुर्मुः।। शिशुपालवध 1/10 अर्थात् महती नामक वीणा को-जिसमें वायु के आघात से पृथक् पृथक ध्वनित होते हुए एवं व्यवस्थित श्रुतिसमूहों से युक्त (षड्जादिसप्त) स्वरों के द्वारा स्वरसंघात (ग्रामविशेष) तथा स्वरों का आरोह अवरोह (मूर्च्छना) स्पष्ट प्रकट हो रहा था-बार बार देखते हुए उन्हें श्रीकृष्ण ने यह नारद हैं, ऐसा समझा। इत्येवमभिव्यक्तसप्तस्वरमुन्मिषितग्रामविशेषमुच्छ्वसित मूर्च्छनानुबन्धमति . बन्धुरमाहितकर्णपारणमाकर्ण्य तस्यास्तदुपवीणनमति प्रहर्षेण परिवत्परिसरातखोऽपि कोरक व्याजेन रोमाञ्चमिवामुञ्चन्।। . गणचिन्तामणि-तृतीय लम्म पृ. 176 इस तरह जिसमें सातों स्वर प्रकट थे, जिसमें ग्रामविशेष प्रकट थे, जिसमें मूर्छना का सम्बन्ध स्पष्ट था, जो अत्यन्त मनोहर था और जिसमें कानों के लिए पारणास्वरूप सब कुछ विद्यमान था ऐसा उस गन्धर्वदत्ता का प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ नाराया 15454545454545454545454545454545454545454674
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy