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________________ 45147467454545454545454545454545451 वादीभसिंह : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व वादीभसिंह का यथार्थ नाम अजितसेन था। उनका युग शास्त्रार्थों का 1 LF युग था। वादी इभों (गजों) के लिए सिंह के समान होने के कारण उनका LE नाम वादीभसिंह पड़ा । मल्लिषेण प्रशस्ति से ज्ञान होता है कि ये बहुत बड़े वादी और स्याद्वाद विद्या के वेत्ताओं के और अन्तरङ्ग का अन्धकार दूर करने । के लिए सूर्य थे। अष्टसहस्री के टिप्पणकार लघु समन्तभद्र अष्टसहस्री के LE मंगलश्लोक पर टिप्पण करते हुए लिखते हैं"तदेवं महाभागैः तार्किकादरूपज्ञातां श्रीमता वादीभसिंहेन उपलालितामाप्तमीमांसामलञ्चिकीर्षव..... प्रतिज्ञा श्लोकमाहुः श्रीवर्द्धमानमित्यादि।" इससे पता चलता है कि आप्तमीमांसा पर वादीभसिंह ने कोई टीका बनायी थी और वह टीका अष्टसहस्त्री से पहले बनी थी। वादिभसिंह ने जिन पुष्पसेन गुरु का उल्लेख किया है, उनका निर्देश -1 मल्लिषेण प्रशस्ति में अकलङ्कके सधर्मा-गुरुभाई के रूप में किया गया है। ऐसी स्थिति में उनका समय ईसा की सातवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध प्रमाणित होता है। वादिभसिंह की गद्यचिन्तामणि पर बाणभट्ट की कादम्बरी का प्रभाव है। अतः वादीभसिंह का समय बाणभट्ट के बाद का होना चाहिए। बाणभट्ट राजा हर्ष की राजसभा में रह चुके थे। हर्ष का जन्म 590 ई. में हुआ था और उन्होंने सम्पूर्ण उत्तर भारत पर 606 ई. से 647 ई तक शासन किया था। 629 ई. में आए हुए चीनी यात्री ने उस समय काव्यकुब्ज के सिंहासन पर बैठे हर्षवर्द्धन -1 का उल्लेख किया है। बाणभट्ट को पश्चात् कालीन मानने पर वादीभसिंह का समय सातवीं शताब्दी ई. का उत्तरार्द्ध सिद्ध होता है। आदि पुराण के रचनाकार आचार्य जिनसेन ने वादिसिंह नामक एक 1 आचार्य का निम्नलिखित रूप में स्मरण किया है "कवित्वस्य परा सीमा वाग्मितस्य परं पदम्। गमकत्वस्य पर्यन्तो वादिसिंहो ऽर्च्यते न कैः।।" आदिपुराण 1/54 151461454545454545455451 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 555555555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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