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________________ .. थाहा 45454545454545454545454545454545 FT. इस कथन से कोई व्यक्ति नेमिचन्द्राचार्य के प्रति आत्मप्रशंसा या 7 दोषारोपण सिद्ध नहीं होता है। यथार्थ में इस कथन का अभिप्राय यह है, कि षट्खण्डागम एक क्लिष्ट एवं गंभीर ग्रन्थ है उसका परिज्ञान करने के लिये हमारे समान ही कठोर एवं सतत परुषार्थ करना होगा, यह शिक्षा मानव समाज - को रचनात्मक रूप से प्रदान की है। नेमिचन्द्राचार्य के प्रधान गुरु श्री अभयनन्दी आचार्य प्रसिद्ध थे एवं गौणरूप से श्री वीरनन्दी और इन्द्रनन्दी भी कहे गये हैं अर्थात् गुरुत्रय के शिष्य नेमिचन्द्र आचार्य थे। इस प्रकार आपने गुरुत्व को पूज्य मानकर एवं अपने को शिष्यत्व स्वीकत कर, भगवान महावीर की आचार्य परम्परा का यथार्थ रूप से निर्वाह किया है। कर्नाटक प्रान्तीय आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का समय अनेक ! प्रमाणों एवं प्रशस्तियों से परामर्श करने पर ई. सन दशमशती का उत्तरार्ध या वि.सं. 11वीं शती का पूर्वार्ध सिद्ध होता है। (तीर्थंकरमहावीर और उनकी आचार्य परम्पराः भा. 2; पृ. 422) श्री नेमिचन्द्र सि.च. सिद्धान्तगगन के कलाधर थे। आपने अधोलिखित आगमग्रन्थों का सजनकर सिद्धान्त की परम्परा को प्रवाहित किया। (1) गोम्मटसार (जीवकाण्ड-कर्मकाण्ड) (2) त्रिलोकसार, (3) लब्धिसार, (4) क्षपणासार, गोम्मटसार ग्रन्थ के मूलतः दो विभाग हैं (1) जीवकाण्ड, (2) कर्मकाण्ड । जीवकाण्ड में गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, 14 मार्गणा और उपयोग इन 20 प्ररूपणाओं के माध्यम से जीवों का विस्तृत वर्णन किया गया है। कर्मकाण्ड में जैनदर्शन के मौलिकतत्त्व का कर्मसिद्धान्त का विस्तृत वर्णन किया गया है । ग्रन्थकर्ता श्री नेमिचन्द्राचार्य साहित्य के भी श्रेष्ठ ज्ञाता थे उन्होंने 51 जीवकाण्ड के प्रारंभ में शब्दालंकार और अर्थालंकार से अलंकृत जो LE मंगलाचरण किया है वह अनुभव करने योग्य इस प्रकार है : सिद्धं सुखं पणमिय, जिणिंदवरणेमिचंदमकलंक। गुणरयणभूसणुदयं, जीवस्स परूवणं वोच्छं।।1।। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 404 SY514741741474147444
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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