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________________ 155555555555555555555555555 HTणधर रचित की चूर्णिसूत्र का आचार्य वार रची हैं। इसका समाधान आचार्य वीरसेनस्वामी ने यह दिया है कि"सम्बन्ध गाथाओं, अद्धा-परिमाण निर्देश करने वाली गाथाओं और संक्रम विषयक गाथाओं के बिना 180 गाथायें ही गुणधर भट्टारक ने कही हैं, ऐसामाना जाये तो उनके अज्ञानता का प्रसंग प्राप्त होता है, इसलिए पूर्वोक्त अर्थ ही ग्रहण करना चाहिये ।" स्पष्ट है कि समस्त 233 गाथायें आचार्य - गणधर रचित हैं. ऐसा स्वीकार करना चाहिये। इस सूत्रग्रन्थ की चूर्णिसूत्र की रचना आचार्य यतिवृषभ कृत जयधवल TE नाम से विख्यात है। इसकी विस्तृत टीका आचार्य वीरसेनस्वामी ने की है। TE वस्तुतः श्रुताचार्य गुण धर के अतिरिक्त इन दोनों आचार्यों का हम पर परमोपकार है जिन्होंने इस दुरुह सूत्रग्रन्थ को समझने योग्य बनाया है तथा TE हमें आत्महित हेतु प्रेरित किया है। पेज्जदोस पाहुड अर्थात् कषायप्रामृत राग, द्वेष और मोह संसार भ्रमण के मूल कारण हैं। प्रभेदों की अपेक्षा तो यह 28 प्रकार का है किन्तु सामान्यता 14 अन्तरंग परिग्रहों में ये गर्मित । हैं। इन अन्तरंग परिग्रह को छोड़ने हेतु दस बाह्य परिग्रहों को छोड़ा जाता है किन्तु बाह्य परिग्रहों के त्यागने पर भी यदि अन्तरंग परिग्रह नहीं छूटता + है तो संसार भ्रमण भी नहीं छूटता। जैसे बबूल के कांटों से बचने के लिये टहनियां तोड़ने की अपेक्षा उसके मूल पर ही कुठाराघात किया जाता है, वैसे ही आचार्य ने इस संसार का मूल रागादि पर ही ध्यान केन्द्रित कर उसका विशद वर्णन इस ग्रन्थ में किया है। यह पन्द्रह अर्थाधिकारों में विभक्त है: 1. प्रयोद्वेष विभक्ति. 2. स्थितिविभक्ति, 3. अनुभागविभक्ति. 4. अकर्मबन्ध की अपेक्षा बन्धक, 5. कर्म- बन्ध की अपेक्षा बन्धक अर्थात् संक्रामक, 6. वेदक, 7. उपयोग, 8. चतुःस्थान, 9. व्यंजन, 10. दर्शनमोहोपशामना, 11. दर्शनमोहक्षपणा, 12. देशविरति, 13. सकल-संयम, 14. चारित्रमोहोपशामना और 15. चारित्रमोहक्षपणा" ये अर्थाधिकार दर्शन एवं चारित्रमोहनीय इन दोनों मोहकर्म प्रकृतियों से सम्बन्धित हैं। अद्धापरिमाण नामक काल प्रतिपादक तथा समुद्घात प्रतिपादक पश्चिमस्कन्ध अर्थाधिकार उक्त पन्द्रह अर्थाधिकारों में ही प्रतिबद्ध समझना चाहिये। आत्महित में बाधक होने से चारों कषाय ही द्वेषरूप/अनुपादेय हैं किन्तु । नैगम व संग्रह नयापेक्षा क्रोध व मान तो दूबेषरूप और माया व लोभ प्रेयरूप प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 389 5594555454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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