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________________ 45454545454545454545454545454545 51 की दृष्टि से कुछ विशिष्ट क्षेत्रों (लोकोत्तर गणित) में जैनों का और विशेष LF रूप से धवला का महत्वपूर्ण योगदान है। लौकिक गणित की दृष्टि से यह 1. योगदान समकक्ष ही माना जायेगा। जैन गणित के क्षेत्र में अनेक शोधकों के बावजूद भी इस योगदान के समग्र मूल्यांकन का काम अभी अपर्याप्त - है। इस बात की भी आवश्यकता है कि जैन गणित की शब्दावली को आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया जावे जिससे इसका मूल्यांकन बहु-विद्वत-सुलभ हो सके। संदर्भ पाठ 1. वीरसेन आचार्य, धवला टीका 1.3.4.10 खंड, सोलापुर, 1940-43 52. यति वृषभ, आ. : त्रिलोक प्रज्ञप्ति 1-2, सोलापुर, 1949-51 F- 3. पद्मनंदि, आ. : जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति-1, सोलापुर. 1958 भट्ट अकलंक : राजवार्तिक-1, भा. ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1953 एल.सी.जैन : (अ) ऑन जैन स्कूल आफ मैथेमेटिक्स, छोटेलाल स्मृति ग्रंथ, कलकत्ता, 1967 पेज 265 म (ब) बेसिक मैथेमेटिक्स-1, प्राकृत भारती, जयपुर, 1982 जैन, एल.सी. और अनुपम, फिलास्फर मैथेमेटीसिय शोध संस्थान, हस्तिनापुर, 1985 मुनि महेन्द्रकुमार; विश्व प्रहेलिका, जैन विश्व भारती, लाडनूं, 1970 सिंह, ए. एन. : (a) षटखंडागम-iv (1942) में दिया गया अंग्रेजी लेख (b) जैन एन्टीक्वेरी, 1949-50 में प्रकाशित लेख नेमिचंद्र शास्त्री; आचार्यकल्प टोडरमल का गणित विषयक पांडित्य, नामक लेख 8. LE रीवा (म.प्र.) डॉ. नन्दलाल जैन JHI. प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 385 95144745454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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