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________________ 4145454545454545454545454545494141 राशि है। इसी प्रकार, विकल्प के अंतर्गत अन्य अनेक सूत्र प्राप्त किये गये । कुछ अन्य प्रकरण : (अ) धाराओं का निरूपण धारा शब्द से कुछ विशेष प्रकार की राशियों का बोध होता है। इनका जैन गणित में पर्याप्त उपयोग किया गया है। यद्यपि धवला में पृथक से धाराओं का सामान्य विवरण नहीं है, पर त्रिलोकसार में 14 धाराओं का सोदाहरण उल्लेख है। इनके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के श्रेणी-व्यवहार का समाहरण होता है। उदाहरणार्थ-सर्वधारा में समांतर श्रेणी की राशियां समाहित होती हैं। इसी प्रकार, समधारा, विषमधारा, कृतिधारा (वर्गराशि), अकृतिधारा, घनधारा, अघनधारा, वर्गमान्तृका (वर्गमूल), अवर्गमातृका, घनमातृका (घनमूल), अघनमातृका, द्विरूपवर्गधारा (दो के वर्ग पर आधारित) द्विरूप घन घारा और द्विरूप घनाघन धारा नामक अन्य धारायें हैं। इनमें वीरसेन स्वामी ने अपने विवरणों में अनेक धाराओं (उदाहरणार्थ, विकल्पों के परिकलन में) का उपयोग किया है। इन धाराओं में गुणश्रेणी समाहित नहीं दिखती। इसके बावजूद भी. गुणहानि और गुणवृद्धि आदि के रूप में वीरसेन ने इनका भी उपयोग किया है। । (ब) क्रमचय और समुच्चय ॥ धाराओं के समान ही, यद्यपि वीरसेन ने क्रमचय और समुच्चय का विवरण नहीं दिया है, पर वे इन प्रक्रियाओं से परिचित थे। इसीलिये तो उन्होंने श्रुतज्ञान के पदों की संख्या स्वर और व्यंजन संख्या के आधार पर 20-1 के रूप में व्यक्त की है और उसका मान दिया है। 4 (स) अल्प बहुत्व की धारणा जैन शास्त्रों में विभिन्न जीवों से संबंधित मार्गणा, एवं गुणस्थानों आदि -के विवरणों में अल्पबहुत्व, सापेक्ष संख्या या स्थिति और राशियों का निरूपण किया गया है। प्रज्ञापना, अनुयोग द्वार, जीवाभिगम आदि ग्रन्थों में इस निरूपण का प्राथमिक रूप देखने को मिलता है। त्रिलोकप्रज्ञप्ति एवं धवला में इनका 1 रूप भिन्न प्रकार से ही प्रदर्शित किया गया है। उमास्वामि ने भी अल्पबहुत्व LE को एक अनुयोगद्वार के रूप में स्वीकृत किया हैं यह सचित्त, अचित्त और भिन्न (जीव-अजीव-संबद्ध) के भेद से तीन प्रकार का बताया गया है। त्रिलोक का प्रज्ञप्ति के 19 द्वीप-सागरगल अल्पबहुत्व की तुलना में वीरसेन स्वामी ने प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ ELETELEरानानानानानाना . . . . 383
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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