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________________ 45414141414141454545454545454545 आचार्य पूज्यपाद और उनकी कृतियाँ . 1 चिरन्तनकाल से ऋषियों, महर्षियों, आचार्यों एवं चिन्तकों ने अपना ना परिचय देश, काल, कुल आदि को अनावश्यक समझकर नहीं दिया। ये आत्मश्लाघा तथा प्रसिद्धि से अपने को दूर रखना चाहते थे। इनका लक्ष्य आत्मोत्कर्ष एवं जिनधर्म की प्रभावना था। भगवान महावीर के सिद्धान्तों को आत्मसात् कर जन-जन तक पहुंचाने वालों की परम्परा के अन्तर्गत बहमुखी प्रतिभा के मान्य व्यक्तित्व, साहित्यसाधना के गम्भीर साधक, अनेक शास्त्रों के धीमान् पण्डित, व्याकरण, दर्शन, अध्यात्म आदि परस्पर निरपेक्ष शास्त्रों 1 के अधिवेत्ता आचार्य पूज्यपाद अपना वंश, समय तथा स्थानगत परिचय देने में कुन्दकुन्द आदि पूर्वाचार्यों का अनुसरण करते हए मौन रहे हैं। यद्यपि आचार्य पूज्यपाद अपने कुल, देश, काल आदि के विषय में स्वयं मौन रहे हैं तथापि परवर्ती आचार्यों एवं विद्वानों ने इनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बहआयामी पक्षों को विस्तार के साथ प्रतिपादित किया है। तदनुसार यहाँ उसे प्रस्तुत किया जा रहा है। पूज्यपाद एक महान साधक थे, जिन्हें विविध नामों से परवर्ती आचार्यों ने स्मरण, वन्दन किया है। अनेक संज्ञाओं की सहेतुकता का स्पष्ट प्रमाण श्रवणवेलगोल के शिलालेख संख्या 40 में मिलता है। उसमें लिखा है कि उनका प्रथम नाम देवनन्दि था। बुद्धि की अतिशयता के कारण जिनेन्द्रबुद्धि कहलाये तथा देवों के द्वारा चरणों की पूजा किए जाने से पूज्यपाद नाम प्रख्यात हुआ। मंगराज कवि के शक संवत् 1365 के शिलालेख से भी इन्हीं पूज्यपाद और जिनेन्द्रबुद्धि नामों की पुष्टि होती है। अधिकांशतः देवनन्दि और पूज्यपाद नाम से ज्ञात आचार्य को केवल पूज्यपाद अथवा केवल देवनन्दि नाम से भी स्मरण किया जाता है और दोनों को वैयाकरण भी माना है। आचार्य जिनसेन और वादिराजसूरि ने इन्हें 'देव" एक देश पद से स्मरण किया है। जैनेन्द्र की प्रत्येक हस्तलिखित प्रति के प्रारंभ में जो श्लोक मिलता है, उसमें ग्रन्थकर्ता ने "देवनन्दित पूजेशं" पद में जो कि भगवान का विशेषण है, अपना नाम भी प्रकट कर दिया है। यथार्थनामा आचार्य के विशिष्ट गुणों का वर्णन परवर्ती अनेक आचार्यों 2 ने बड़ी श्रद्धा के साथ किया है। आचार्य शुभचन्द्र ने अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए लिखा है जम99595955555999999999 दे की अतिशयलता है। उसमें का स्पष्ट प्रमाण -1-1-11 -1 -1 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 360 15454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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