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________________ ELETELETELELETEमानानानानानाना FIEEEEEETELEIFIFIEIFIEIFIEI है कि हरिवंश पुराण की रचना होने के समय तक जिनसेन स्वामी पार्श्वजिनेन्द्र म - स्तुति तथा वर्द्धमान पुराण नामक दो ग्रन्थों की रचना कर चुके थे और इन रचनाओं के कारण उनकी विशद एवं विमल कीर्ति विद्वानों के हृदय में अपना घर कर चकी थीं। आचार्य जिनसेन की जयधवला टीका तथा महापुराण की रचना नहीं हुई होगी। पार्वाभ्युदय तथा वर्धमान पुराण की रचनाओं का काल प्रारम्भिक काल मालूम होता है। इस समय जिनसेन स्वामी की आयु 25-30 वर्ष की रही होगी। हरिवंशपुराण के अन्त में दी गई प्रशस्ति से हरिवंशपुराण की रचना शक्सम्वत् 705 (सन् 783) में पूर्ण हुई' सिद्ध होता है। दस-बारह हजार श्लोक संख्यक हरिवंशपुराण जैसे विशाल ग्रन्थ-रचना में कम से कम पांच वर्ष का समय अवश्य लगा होगा। यदि रचनाकाल में से ये पांच वर्ष घटा दिये जाएं, तो हरिवंश पुराण का प्रारम्भकाल शक् सम्वत् 700 सिद्ध होता है। हरिवंशपुराण की रचना को प्रारम्भ करते समय आदिपुराणकार जिनसेन की आयु कम से कम 25 वर्ष की रही होगी। इस प्रकार शक सम्वत् 700 में से ये पच्चीस वर्ष कम कर देने पर आदिपुराण के कर्ता जिनसेन का जन्म काल शक सम्वत् 675 के लगभग सिद्ध होता है। स्व० पं0 नाथूराम प्रेमी ने अनुमान किया है कि जिनसेन का जीवन 80 वर्ष के लगभग रहा होगा और वे शक् सम्वत् T- 685 (सन् 763) में जन्मे होंगे जयधवला टीका की प्रशस्ति से विदित होता है कि स्वामी जिनसेन ने अपने गुरुदेव वीरसेन स्वामी के द्वारा प्रारम्भ किंतु गुरु के स्वर्गवासी हो जाने के कारण अपूर्ण वीरसेनीया टीका' शक् सम्वत् 759 (सन् 837) फाल्गुन शुक्ला दशमी के पूर्वार्द्ध में जब आष्टाहिनक महोत्सव की पूजा हो रही थी, पूर्ण की थी, इससे यह मानने में कोई संदेहावकाश नहीं रह जाता कि जिनसेन स्वामी शक सम्वत् 759 तक विद्यमान थे। 40 हजार श्लोक प्रमाण टीका के कार्य में जिनसेन स्वामी का बहुत समय निकल गया। सिद्धान्तग्रन्थों की टीका के पश्चात् जब उनको विश्राम मिला, तब उन्होंने अपने चिरभिलषित कार्य को हाथ में लिया और उस पुराण की रचना प्रारम्भ की, जिसमें वेसठ शलाका पुरुषों के चरित्र-चित्रण की प्रतिज्ञा की गई थी। जिनसेन स्वामी के ज्ञानकोश में न शब्दों की कमी थी और न अर्थों की। अतः वे विस्तार के साथ किसी 15भी वस्त का वर्णन करने में सिद्धहस्त थे। स्वामी जिनसेन ने आदिपराण का प्रारम्भ वृद्धावस्था में ही किया होगा, इसी कारण वे 42 पर्व ही लिख सके 1 और ग्रन्थ को पूर्ण करने के पूर्व ही दिवंगत हो गये। इस प्रकार जयधवला प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ IFIELEUTELEGEनानानानानासार ELETEENET IFIEFIFIEI - 353
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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