SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4519914574514614545454545454545454545 ही था: लेकिन अपनी अद्वितीय आत्मशक्ति से आपने वह कर दिखाया। सराक. समाज की धारा से जुड़कर शेष भारत के श्रावकों के समकक्ष रहे, उनके साथ घुलमिल जायें यही आपका प्रयास है। सच भी है, पं. बंगाल, बिहार, उड़ीसा में ८-१० लाख जैन यदि हमारे अपने हैं, और हो जाते हैं तो इससे अधिक जैनसमाज के लिए और प्रसन्नता क्या हो सकती है। शक्ति और संगठन के साथ-साथ सुदूरवर्ती क्षेत्रों में जैनत्व का प्रचार-प्रसार होगा। बिहार प्रदेश के रांची जिला में युवा सम्मेलन अ. भा. विद्वत् संगोष्ठी, महासभा अधिवेशन, दि. जैन शास्त्री परिषद, अधिवेशन, तीर्थरक्षा समिति अधिवेशन आदि अनेक कार्यक्रम जिस प्रभावना व सफलता के साथ सम्पन्न हुए वे सब इतिहास के ऐतिहासिक पृष्ठ बने हैं। बिहार प्रान्तीय युवा परिषद का अधिवेशन सम्पन्न हआ। तीर्थंकर महावीर की आचार्य-परम्परा का विवेचन हुआ। गया चातुर्मास के पश्चात् उपाध्याय श्री रफीगंज, डाल्टनगंज, हजारी बाग, रायगढ़, कैन्ट आदि नगरों में विहार करते हए राँची पधारे और यहाँ एक माह के प्रवास में ही समाज पर एवं नगर पर जाई जैसा प्रभाव स्थापित किया। जैनेतर समाज इतनी प्रभावित थी कि सर्वधर्म सम्मेलन में सभी धर्मों के प्रतिनिधियों ने भाग लेकर उपाध्याय श्री जी के प्रति अगाध श्रद्धा प्रकट की। वहाँ के पुलिस अधीक्षक की अभ्यर्थना तो वर्णनातीत है। किसी जैन साधु का इतना व्यापक प्रभाव कि आज सारा बिहार ज्ञानमय हो चुका TH है। उनके आगमन पर पलक-पॉवड़े बिछाने को तैयार हैं। मेरठमण्डल का धर्मस्थलल :- सन् 1995 के प्रथम माह में मेरठ के पंचकल्याणक में आपके शुभागमन ने तो सभी का कल्याण कर दिया है। मेरठ मण्डल में आपका विहार स्वयं में एक गौरवमयी गाथा बन गई है। हजारों की संख्या में प्रतिदिन श्रद्धालुओं का साथ-साथ गमन, स्थान-स्थान से बसों का आना, चातुर्मास स्थापना के लिए हजारों की संख्या में श्रीफल चढ़ा-चढ़ाकर प्रार्थना करना किसी आश्चर्य से कम न था। एक चतर्थकालीन दृश्य सबको विस्मित कर देता। युवाओं की भीड़ की भीड़ के जयकारे, प्रवचनों में अपने-अपने स्थान पर चातुर्मास का आग्रह, भजन व भाषणों से विनयपूर्वक - उद्गार प्रकट करना, साधु और श्रावक के सम्बन्ध को परिपुष्ट करता हुआ अद्वितीय उदाहरण बन जाता। गाँव के गाँव साथ चलते रहते। संभवतः मेरठ F1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 330 LELELE7 4564574574575576574514514517451454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy