SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4514614545454545454545454545454545 F1 परिजन-पुरजन मर्मस्पर्शी रोमांचक एवं प्रभावी संस्मरणों से बालक उमेश 51 से ब्र० उमेशजी तक का जो चित्रांकन करते हैं वह निःसन्देह उल्लेखनीय F- है। बचपन से आपकी आत्मनिष्ठा, दृढ़ता, तार्किक क्षमता विलक्षण है। पं. सुमतिचन्दजी शास्त्री मुरैना, जिन प्रसंगों को भूले नहीं भूलते हैं उनमें से एक है निरुत्तर कर देने की क्षमता । कहते हैं -व्यथित परिवारजनों विशेषतः विह्वल माता-पिता के पुत्रमोह से उद्वेलित मैं जब गृहत्याग हेतु तत्पर ब्र. उमेश को सोनगिरि फोन करता हूँ "उमेश अभी तुम बहुत छोटे हो, घर लौट आओ अभी १७-१८ वर्ष की अवस्था गृहत्याग की नहीं है, तो झट से कहते हैं - "पण्डितजी, मैं छोटा सही, आप तो बड़े हैं आप ले लीजिए" तो मैं निरुत्तर ठगा सा रह गया।" (आज भी पूज्य श्री का यह विशेष गुण सभी को अभिभूत करता है।) भविष्य के इन प्रख्यात संत का बाल्यकाल संत जैसा ही रहा, बचपन की अनावश्यक उद्दण्डताओं से दूर शांत प्रकृति, साधु को ही सर्वस्व समझने वाले ब्र. उमेश १२-१३ वर्ष की अल्पायु ही में अघोषित रूपेण अपने भविष्य का स्वयं निर्धारण कर चुके थे, सभी इस अल्पवय बालक की चेष्टाओं में पूर्व संस्कारों को देख चुप तो हो जाते पर सशंक हृदय से यह भी जान चुके थे कि यह घर संसार के मायामोह से सर्वथा विरक्त ही रहकर निःस्पृह जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्तित्व है। छोटे से बीज के अन्दर व्यापक संभावनाएँ मोहवश देखकर भी कब तक अनदेखी की जा सकती थी। पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी से ब्रह्मचर्यव्रत लेकर 'कातंत्र व्याकरण', 'पाणिनि व्याकरण, अष्टाध्यायी अष्टसाहस्री, 'तत्त्वार्थ सूत्र' एवं 'जैन सिद्धान्त प्रवेशिका' जैसे ग्रन्थों के अध्ययन का सयोग मिला। एक विनम्र सयोग्य शिष्य 4 के रूप में पू. आचार्य श्री जी का सहज स्नेह वात्सल्य प्रचुरता से आपके साथ रहा है। पू० आ० सुमति सागर, मुनिश्री विवेक सागर, आचार्य कल्प श्रुतसागर जी सदश तपोनिष्ठ संतों के पावन सानिध्य ने जीवन को शद्ध से शुद्धतम एवं संस्कारित बनाया। एक बार आचार्यकल्प श्रुतसागर जी के संघ ने श्रीमहावीरजी से सवाई र तक विहार किया। मार्ग में बनासनदी आई। नाव में बैठकर सभी साधुओं ने नदी पार करने का निश्चय किया। नदी में पानी बहुत था, नाव कुछ पुरानी थी इसलिए नदी के बीच में पहुँचते-पहुँचते वह डगमगाने लगी, नाविक भी घबरा गया। सभी ने णमोकारमंत्र का जाप करना शुरू किया। 325 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 1695796456457457458459545454545454555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy