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________________ फफफफफफफफफ फफफफफफ5555555 लेकर संघ से अलग होकर उत्तर प्रदेश की ओर मुड़ गये। यहां के छोटे-छोटे गाँवों में आपने विहार किया और नवयुवकों में अपूर्व धार्मिक श्रद्धा उत्पन्न की। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में विहार करते हुए आपके सानिध्य में समाज ने खेकड़ा, बिनौली, सरधना, बुढाना, शाहपुर में विद्वत् गोष्ठियां आयोजित की तथा आचार्य कुन्दकुन्द वर्ष को सफल बनाने में सक्रिय योगदान दिया । उत्तरप्रदेश से बिहार की ओर विहार किया। आपका प्रथम चातुर्मास शिखर जी में हुआ। शिखर जी में आपने वहां के जैन समाज का मन जीत लिया। वहां के समाज ने इसके पूर्व किसी साधु के लिये चौके नहीं बनाये थे लेकिन आपके प्रति इतनी भक्ति एवं श्रद्धा उमड़ पड़ी कि पूरे चातुर्मास आपकी तन, मन एवं धन से भक्ति की । चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् विहार करने की भी समस्या थी। जब वे वहां से गिरिडीह पहुंचे तो समाज ने उपेक्षित भाव से आपका स्वागत किया। लेकिन जैसे-जैसे समाज आपसे परिचित होने लगा उनकी साधना, तप एवं वीतरागता को देखा, उनके प्रवचन सुने तो आपके प्रति सहज ही आकर्षण बढ़ने लगा और समाज ने पाया कि उपाध्यायश्री वर्तमान युग के महान् साधु हैं तथा वैराग्य एवं ज्ञान की मूर्ति हैं। आपका दूसरा चातुर्मास वर्ष 1991 में गया में हुआ। गया जैन समाज की उपाध्यायश्री के प्रति भक्ति भी अविस्मरणीय रही और जैसे वर्तमान में रांची में उनके प्रति आर्कषण है वही दृश्य वहां भी देखने को मिला था । गया में भी मुझे दो बार जाने का अवसर मिला । चातुर्मास समाप्ति पर गया में उपाध्यायश्री के सानिध्य में भव्य समारोह हुआ। बिहार प्रदेश का जैन युवा सम्मेलन, विद्वद् संगोष्ठी, महासभा अधिवेशन, शास्त्रि परिषद् अधिवशेन, तीर्थ रक्षा समिति अधिवेशन आदि अनेक कार्यक्रम जिस प्रभावना एवं सफलता के साथ संपन्न हुये वे सब अब इतिहास के पृष्ठ बन चुके हैं। गया चातुर्मास के पश्चात् उपाध्याय श्री रफीगंज, डाल्टनगंज, हजारीबाग, रामगढ़ कैन्ट आदि नगरों में विहार करते हुये रांची पधारे और यहां एक महिने के प्रवास में ही समाज पर एवं नगर पर जादू जैसा प्रभाव स्थापित कर लिया। अभी जब हम रांची में उपाध्याय श्री के पास बैठे हुये थे तो वहां के अग्रवाल समाज के अध्यक्ष भी आकर उपाध्यायश्री से अग्रवाल भवन में प्रवचन करने की प्रार्थना कर रहे थे। रांची में यह प्रथम अवसर प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 322 फफफफफफफ455555555557
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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