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________________ 1555555555555555555555555555555 ' शाहपुर एवं बलवीरनगर देहली में दर्शनों का सुयोग मिला। लेकिन आपके है सानिध्य में सेमिनारों एवं संगोष्ठियों में व्यस्त रहने के कारण आपसे विशेष बात नहीं हो सकी। अभी शिखर जी में मैंने एक दिन अवसर देखकर विनम्र स्वर में जानना चाहा कि उपाध्यायश्री को वैराग्य लेने के भाव क्यों हुए? इसके 51 TE पीछे क्या कारण है? उपाध्यायश्री पहले तो मौन रहे और मुझे ऐसा लगा कि वे अपने विगत जीवन के बारे में कुछ बताना नहीं चाहते, लेकिन मैंने 47 फिर उनसे निवेदन किया कि महाराज, इसमें मुनिचर्या में कोई दोष नहीं लगता और न यह स्वयं की प्रशंसा करने के दोष में आता है। अंत में उन्होंने TE - जो बताया वह संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है। उपाध्यायश्री का जन्म मुरैना नगर में सन 1958 में हुआ। आपके पिता + TE श्री शांतिलाल एवं माता अशरफी बाई प्रथम पुत्र को पाकर फूले नहीं समाये। शिशु का नाम उमेश रखा गया। उमेश जैसे-जैसे बड़ा होने लगा. माता के साथ मंदिर जाने व साधू संघ आने पर उनके दर्शनों को जाने लगा। कछ बड़ा हआ। स्कूल जाने लगा। लेकिन मां बाप ने देखा कि उमेश को साधुओं के साथ रहने में बड़ा चाव है इसलिये वह बिना कहे ही उनके साथ हो जाता है और महाराज का कमण्डलु लेकर साथ चलने लगता है। बड़ी कठिनाई से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और 12-13 वर्ष की आयु में ही । साधुओं के साथ रहने लगा। मुरैना छोड़ दिया। मां-बाप भाई, बहिन सभी को छोड़ कर साधुओं के साथ हो गया। अब तो चारों ओर उमेश का ही नाम चर्चित हो गया। एक तो आयु में बहुत छोटा, फिर मां बाप से दूर तन-मन से साधुओं की सेवा-इन सबने बालक उमेश को और भी प्रोत्साहित किया। उमेश को आचार्य विद्यासागर जी, आ. सुमतिसागर जी, आचार्य कल्प श्रुतसागर जी जैसे तपोनिष्ठ संतों का समागम मिला। उनके संघ में रहने, उनकी जीवनचर्या को देखने, मुनि जीवन की कडुवी एवं मीठी घटनाओं को देखने-परखने एवं उनकी सेवा-सुश्रुषा करके शुभाशीर्वाद प्राप्त करने में उन्हें 1. पर्याप्त सफलता मिली। आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से उन्होंने ब्रह्मचर्य 21 व्रत ही नहीं लिया किन्तु कातंत्र व्याकरण, तत्वार्थसूत्र एवं जैनसिद्धान्त LE प्रवेशिका जैसे ग्रंथ प्रारंभिक आयु में अध्ययन करने का सुयोग मिला । आपने मोटर गाड़ी में नहीं बैठने का नियम भी ले लिया और इस प्रकार साधुओं 51 के साथ पद यात्रा करने लगे। आपको आचार्य सुमतिसागर जी, मुनि श्री । प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 318 171 -- 119756454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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