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________________ 949545454545454545454545 - बस क्या था? पाँच दिन के भीतर-भीतर उसका पागलपन हमेशा के LF लिए नष्ट हो गया। कुछ दिनों के बाद वह अपने घर की जिम्मेदारी यथावत् संभालने लग गया। स्थल मेहसाना (गुजरात)। मेहसाना के दिगम्बर जैन मंदिर का कुआँ । उसमें पानी नहीं था। आपने अपने कमण्डलु से पानी निकालकर कूएँ में छिड़का। न मालूम उसमें पानी कहाँ से धमका। लोग उसे देखते ही आश्चर्यसागर में डूब गये। ____ स्थल श्रवणबेलगोला । वहाँ पर कुछ एक व्यक्तियों ने एक कुत्ते को बुरी तरह फटकारा। उसकी स्थिति मृतक के समान हो गयी। पू. आचार्य सुमतिसागर जी ने महामन्त्र णमोकार पढ़कर उस कुत्ते पर पानी छिड़का। वह उसी क्षण स्वस्थ होकर दौड़ने लगा। उपस्थित जनता यह देखकर चकित रह गयी। ईडर की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में लगातार चार-पांच दिनों तक केशर TE की वर्षा हुई थी, और सोनागिर में भी इस प्रकार हुआ था। यह सब आपकी तपश्चर्या का ही प्रभाव है। आपसे प्रभावित होकर कई खटीकों ने अपना पेशा छोड़ दिया था, कई मांस-भक्षियों ने मांस खाना छोड़ दिया है, कई शराबियों ने शराब पीना छोड़ दिया है। आपकी प्रवचनशैली आपके प्रवचन अपने ढंग के अनोखे हैं। आपकी प्रवचन शैली सरल । और सुबोध है। तत्व का मर्म स्पष्ट करने के लिए आप जो छोटे-बड़े दृष्टान्त पेश करते हैं उनसे आपके प्रवचन और निखर उठते हैं। आपके व्याख्यानों से प्राप्त कुछ चिन्तन-कणिकाएं : 1. सच्चे सुख का साधन है देवशास्त्रगुरु की शरण । उनकी अनन्य भक्ति से जीव सुख की प्राप्ति अवश्यमेव कर पायेगा। 2. धन्य वही है जिसने जीवन का एक-एक क्षण आत्मसंशोधन में लगा दिया है। 3. किसी भी हालत में चित्त को चंचल मत होने दें, क्योंकि उसे चंचल __ रखने से कष्टों की परम्परा बनी रहेगी। 4. किसी के पाप को जानकर उससे घृणा न करें। अगर घृणा करो 311 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर भणी स्मृति-ग्रन्थ 95454555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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