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________________ 1514646464545454545454545454545 51 की दुलारी ही हैं। संयम और त्याग की ओर उनका झुकाव शुरू से ही है। जिनकी होनहार अच्छी होती है, उन्हें ही संयम, त्याग, दया, करुणा आदि के भावों की जागति रहती ही है। __आपके तीन भाई हैं : झून्नीलाल जी, बाबूलाल जी एवं रामस्वरूप जी। आपकी बहन है कलावती जी। इन चारों को भी जैनधर्म के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा आपके भाई झुन्नीलाल जी भी वर्तमान युग के मुनिवर श्री 108 TE अजितसागर जी हैं। आपके दो पुत्र हैं : बारेलाल एवं भागचन्द जी । आपके दो पुत्रियाँ हैं : कपूरीबाई और शकुन्तलबाई। ये भी सुशील एवं गुणज्ञ हैं। आपके गृहस्थ जीवन की कुछ चिरस्मरणीय घटनाएँ आपकी शादी के पश्चात् की एक बात है। एक डाकू। नाम था उसका रामदुलारे। वह आपको उठाकर ले गया, परन्तु आपमें उस समय भी भय का नामोनिशान तक नहीं था। आपकी आँखों में अश्रु की एक बूंद भी नहीं गिर पायी थी। चौदह दिनों के भीतर आप किसी न किसी तरह डाकुओं के गिरोह से अपने गाँव वापस आ पहुंचे थे। प्रसंग दूसरा । परगना अम्बहा। कुछ डाकू आये। उन्होंने आपको पकड़ लिया। उन्होने आपकी छाती पर बंदूक की नोक रख दी। आपके गहने उतार दिये। उन डाकुओं ने भी माल बताने के लिए आपको मजबूर किया, परन्तु आपने निर्भीक होकर उत्तर दिया कि मैं कुछ नहीं जानता, पिताजी जानते होंगे। उस समय आपके पिताजी मकान की ऊपरी मंजिल पर सोये हुए थे। वे जाग उठे और परिस्थितिवश सोचकर ऊपर से नीचे कूदे। हल्ला हो गया। डाकू आपको छोड़कर भाग गये। प्रसंग तीसरा । एक समय की बात है। आप अपनी दुकान पर सो रहे - थे। कोई एक विषैला जानवर आया। उसने आपको काटा। आप बेहोश अवश्य हो गये, परन्तु आपके प्राणों की कोई हानि नहीं हुई। सच है अगर पुण्य कर्म प्रबल है तो मुसीबत के समय भी एक बाल तक बांका नहीं होता। प्रसंग चौथा। एक बार आप चोरों से घेरे गये। वे आपको मारने पर LE उतारू ही थे कि इतने में मिलिटरी के कुछ सिपाही आ पहुंचे। उन्होंने चोरों को पकड़ लिया, परन्तु आपने चोरों को कतई सजा न होने दी। धन्य है आपके हृदय की विशालता। -E1515 545451 - प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 308 454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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