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________________ 49594454976941941041144145 भाई श्री प्रकाश जी शास्त्री न्यायतीर्थ व मुझे करना पड़ा और थोड़े दिन के भी बाद ही भाई प्रकाश जी का सन् 1950 में स्वर्गवास हो गया। वे अच्छे विद्वान् पE F थे। यह सारा ग्रन्थ 20 इंच गुना 30 इंच/आठ साइज में जयपुर के सांगानेरी हैड मेड पेपर में छपा है। सांगानेरी कागज टिकाऊ होता है। जयपुर में प्रायः TE सारे शास्त्र भण्डारों के ग्रंथों में यही कागज लगाया जाता था। इसकी दस F- किरणें हैं पूर्वार्द्ध की पांच और उत्तरार्द्ध की पांच । पूर्वार्द्ध में मुनि धर्म का वर्णन 4 और उत्तरार्द्ध में श्रावक धर्म का वर्णन है। जैसा कि ग्रंथ के नाम से विदित होता है कि इस ग्रंथ में संयम का ही मुख्यतः विवेचन है। संयम के भेद-प्रभेदों को पूर्णतः इसमें बताया गया है और सरल भाषा में समझाया गया है। यह ग्रंथ जटिल नहीं है। सर्व TE साधारण की भाषा में सुगम है। अनेक ग्रंथों की बजाय एक ही इस ग्रंथ का स्वाध्याय-मनन-चिन्तन एक साधारण पढ़े लिखे आदमी को धार्मिक सैद्धान्तिक ज्ञान कराने में सक्षम है। साथ ही उसको संयमित जीवन बिताने की प्रेरणा प्रदान करता है। - पूर्वार्द्ध की प्रथम किरण में साधु के मूल गुणों का, महाव्रतों का सारांशतः +वर्णन है। मुनि चर्या कैसी होनी चाहिए, उनका रहन सहन, खान-पान आदि TE शास्त्रानुसार विवेचन इस प्रथम किरण में 168 पृष्ठों में है। ॥ द्वितीय किरण समाचार अधिकार की है। समाचार अर्थात् मुनि और ' आर्यिकाओं का आचरण कैसा हो यह 144 पृष्ठों में खोलकर समझाया गया का - ग्रंथ की तृतीय किरण पंचाचाराधिकार है। महाव्रतियों के लिये मुख्यतः, 45 पांच आचार का पालन निश्चित रूप से अनिवार्य है। सम्यग्दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार। इनके भेद-प्रभेद खोल कर 2। समझाये गये हैं। तृतीय किरण के 228 पृष्ठ हैं। LE चतुर्थ किरण-भावनाधिकार है। मानव जीवन में उत्थान और पतन - करानेवाली उसकी भावनायें ही हैं। सद्भावनायें उत्थान कारक हैं और असद । भावनायें पतन का कारण हैं। भावनामय ही जीवन है वे ही जीवन निर्माण LS करती हैं। अतः सदा सद्भावनायें ही रखना चाहिये। यह एक प्रकार अभ्यास है और वैराग्य में स्थिरता व आनन्द सुख की वृद्धि करता है। आचार्यों ने 1 12 भावनायें बताई हैं जिनका निरन्तर अभ्यास अपेक्षित है। अनित्यादि 12 45454545454545454545454545 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 1957 1956 19574575576574755755765757
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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