SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1145454545454545454545454545454 5 से इन्हें संसार से उदासीनता होने लगी। संवत् 1981 में एक स्वप्न ने श्री हजारीमल जी के जीवन में एक परिवर्तन ला दिया। स्वप्न में आपने देखा कि एक जलाशय में तख्त पर बैठा कोई उनसे कह रहा है कि चले आओ, देर न करो। उसके आग्रह पर भी इन्होंने ध्यान नहीं दिया तो उस व्यक्ति ने तख्ने को किनारे पर लगा कर इन्हें तख्ते पर चढ़ाया और जल में कुछ दूर दे जाकर पीछी कमण्डलु को दिखा कर कहा कि इन्हें ले लो। इन्होंने इन्कार किया और दो-तीन बार कहने पर भी नहीं उठाया। नहीं लेना है यह कहते हुए बिस्तरों पर कुछ हटे तो पलंग से नीचे गिर गये। यह सत्य घटना नहीं स्वप्न की बात है, पर इससे उनके जीवन में काफी परिवर्तन आया और उसी साल सन् 1925 में आश्विन कृष्ण षष्ठी को इन्दौर में विराजमान आचार्य श्री शान्तिसागर छांणी महाराज जी से ऐलक दीक्षा ले ली। दीक्षा लेने के बाद आपका नाम हजारीमल से सूर्यसागर रखा गया। आपके भाव साधु जीवन की ओर बढ़ने लगे। ऐलक अवस्था की लंगोटी का परिग्रह भी आपको अखरने लगा और 15 दिन के पश्चात् ही मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी को हाट पीपल्या (मालवा) में अपने गुरु आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज छाणी से सर्व परिग्रह त्याग आत्म कल्याण की भावना से दिगम्बर मुनि की दीक्षा ले ली और तप साधना में लीन रहने लगे। 41 वर्षीय मुनि श्री 108 सूर्य सागर जी के जीवन में जहां स्व कल्याण स्वात्मोत्थान की भावना थी साथ ही धर्म प्रचार तथा समाज के उत्थान के विचार भी पनपते रहे। धार्मिक शिक्षा और सदप्रवृत्तियों पर आप सदा जोर देते थे। आपके सदुपदेश से अनेक स्थानों पर पाठशालायें, विद्यालय, 4 औषधालय खुले, समाज में व्याप्त कषायें भी कम हुई। आपसी झगड़े-टंटे जो कोर्ट कचहरी तक में चलते रहे, जिनमें आपसी मारपीट तक हई ऐसे 1 सैंकड़ों स्थानों के व्यक्तिगत, पंचायती और सामाजिक झगड़े मिटे, शान्ति 15 स्थापित हुई। भिंड, टोंक, मुंगावली, खुरई, चंदेरी, टीकमगढ़, हाट पीपल्या, - उदयपुर, संवारी, भीलवाड़ा, डबोक, साकरोदा, नरसिंहपुरा आदि में वर्षों तक चलने वाले झगड़े शान्त हुए। जयपुर में भी एक-ग्यारह का झगड़ा समाज में चला और काफी फैला। बहिन-बेटियों का आपस में पीहर ससुराल आना जाना बन्द हुआ। विवाह-शादियों में सम्मिलित होना बन्द रहा। यह मनमुटाव झगड़ा तीन वर्ष प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - 54545454545454545454545454545457
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy