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________________ 卐卐卐卐卐卐卐555555编 !!!!! फ्र आदर्श संत परमपूज्य आचार्य श्री सूर्यसागर जी महाराज : एक संस्मरण आचार्य श्री सूर्यसागर जी महाराज का वि.सं. 1940 को मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिलान्तर्गत पेमसर नामक ग्राम में जन्म हुआ था। आपका जन्म का नाम श्री हजारीलाल जैन था। आपने वि.सं. 1981 को 41 वर्ष की उम्र में सन्तशिरोमणि ज्ञानदिवाकर समाधिसम्राट् परमतपस्वी परमपूज्य श्री 108 आचार्य शांतिसागर जी (छांणी) से इन्दौर में ऐलक दीक्षा ली, और आपका नाम सूर्यसागर जी रखा गया, आपने 51 दिन पश्चात् ही आचार्य शांतिसागर जी (छाणी) से हाटपिपल्या ( मालवा) में सर्व परिग्रह का त्याग कर जैनेश्वरी दीक्षा अंगीकार की, और 45 वर्ष की उम्र में वि.सं. 1985 को आपने कोडरमा (बिहार) में आचार्य पद प्राप्त किया था । आचार्य श्री के निज स्वभाव साधन का विचार तो निरन्तर रहता ही था लेकिन, साथ ही संसार के प्राणियों के प्रति करुणाभावं भी था कि इनका जन्म-मरण के दुःखों से किस प्रकार छुटकारा हो। यह विचार आपके हृदय सालता रहता था। इस बात का सबूत है 'संयमप्रकाश' नामक ग्रंथ जो कि पूर्वार्द्ध व उत्तरार्द्ध दोनों 10 भागों में मुनिधर्म और श्रावकधर्म के बारे में भव्यजीवों के सम्बोधनार्थ उनकी भलाई निहित करके स्वाध्याय के लिए यह ग्रंथ प्रस्तुत किया आपका संयम प्रकाश आत्म हितेच्छुओं को सम्यक् मार्गदर्शन करता हैं। इसके स्वाध्याय से आत्मलाभ लेना चाहिये। आचार्य श्री निश्चय और व्यवहार मोक्षमार्ग पर पूरी तरह आरूढ़ थे। जैसा उन्होंने जाना और समझा उसे अपने व्यवहारिक जीवन में स्थान दिया और वैसा ही उन्होंने संयमप्रकाश ग्रंथ में प्रस्तुत किया। आपने और भी ग्रंथ भव्यजीवों के संबोधनार्थ लिखे। आपने संयमप्रकाश ग्रंथ में तो करीबन मुख्य-मुख्य जैनसैद्धान्तिक सभी ग्रंथों का और जैनेत्तर ग्रंथों का भी सार निकालकर बहुत ही अच्छी तरह प्रकाश डाला हैं। मुझे यह लिखते हुये परम हर्ष होता है कि जैनाचार्यों, मुनिराजों एवं प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 286 55
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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