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________________ 15454545995594554564545454545454545 2. हरि विलास प्रकाशित 13. प्रतिष्ठासार-संग्रह शास्त्राकार सजिल्द यह ग्रन्थ लगभग 2000 पृष्ठों का होगा 4. अध्यात्म सार संग्रह 5. कविता संग्रह सार अप्रकाशित (स्वरचित) सामाजिक क्षेत्र में आपने जो कार्य किए उनका विवरण सिर्फ इतना कह : देने में ही पूर्णरूपेण दृष्टिगोचर होने लगता है कि क्षेत्र पपौरा, अहारजी एवं 4 अनेक संस्थाओं के आप अधिष्ठाता, व्यवस्थापक एवं संचालक हैं। इन क्षेत्रों म एवं संस्थाओं में आपने जितने भी कार्य किए हैं, वे अवगुण्ठन में नहीं हैं। आपके संकल्प इतने अडिग हैं कि विरोधी तत्वों के अनेक विग्रहों, महादुर्मोच्च, भयानक संकटों, शारीरिक आधि-व्याधियाँ तथा लोगों की दुर्जनतापूर्ण मनोवृत्तियों से भी आप टस से मस नहीं हुए। अनेकों तरह की आपदाओं ने आपको कर्तव्य पथ से डिगाना चाहा पर निर्भीक स्वात्म बल + से आपको सदैव सफलता मिली। गेंदाबाई था। माता-पिता ने आपका नाम हजारीलाल रखा। झालरापाटन में आपके चाचा रहते थे। उन्होंने आपका पालन-पोषण कर गोद ले लिया। उस जमाने में शिक्षा का प्रचार कम था अतः आपकी शिक्षा प्रारम्भिक हिन्दी ज्ञान तक सीमित रही। गृहस्थावस्था में कुछ दिन रहने के बाद संवत् 1981 को रात्रि में एक स्वप्न के कारण संसार स्वरूप से विरक्ति हो गयी। बस, सिर्फ गुरु की तलाश थी। विक्रम संवत् 1981 आसौज शुक्ल 6 का दिन भाग्योदय का दिन था। LE इन्दौर में पूज्य आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज (छाणी) के पास आपने ऐलक दीक्षा ग्रहण की। आचार्य श्री ने आपको दीक्षा देकर 'सूर्यसागर' नाम दिया और आपने सूर्य की तरह चमक कर जग का अज्ञानान्धकार दूर किया। मंगसिर कृष्ण 11 को गुरु से हाटपीपल्या में उसी वर्ष मुनि पद की भी दीक्षा ग्रहण की। आपकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर समाज ने आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। आप निर्भीक वक्ता, जिनधर्म की आचार-परम्परा का प्रचार करने वाले, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी आचार्य थे। जिनके उपकारों से समाज कृतकृत्य है। पूज्य मुनि श्री गणेशकीर्तिजी महाराज आपको अपने गुरुतुल्य TE मानकर निरंतर मार्गदर्शन प्राप्त करते रहें हैं, जग-उद्धारक ऐसे आचार्य श्री के चरणों में शत-शत वंदन। आचार्य श्री का विस्तृत परिचय इस स्मारिका के अनेक लेखों में दृष्टव्य है। 14545454545454545454545454545454545454545 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 254 154141414145146145455565757575745755
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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