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________________ 纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷纷56 का व्यापार करते थे। आपके सुयोग्य दो पुत्र हैं जो कि चिंतामन और धर्मचन्द, बम्हौरी में रहते हैं। आपके वंश द्वारा रेशंदीगिर के उद्धार का कार्य हुआ है। ऐसा जैन मित्र से ज्ञात हुआ है कि आपके पूर्वजों ने यहाँ जंगली झाड़ियाँ 1 सफाई कराके नैनागिर क्षेत्र को प्रकाश में लाया था, फिर आपके द्वारा तो पूर्ण उद्धार हुआ है। पंच कल्याणक, गजरथ आदि बड़े मेले तो आपके प्रयत्न के सफल नमूने हैं। क्षेत्र की उन्नति करना आपका मामूली कार्य नहीं था बल्कि कठोर त्याग का फल था आपको बचपन में खुमान कहा करते थे और भविष्य में तो मान खोने वाले ही निकले। आपने मिति ज्येष्ठ सुदी 5 संवत् 1948 को द्रोणागिर में मुनि अनंतसागर जी और शान्तिसागर जी महाराज छाणी से दूसरी प्रतिमा ली थी तब आपका नाम ब्र. खेमचन्द रखा। मिति आषाढ़ वदी 8 संवत् 1995 में अंजड़ बड़वानी में मुनि सुधर्मसागर जी से 7वीं प्रतिमा थी। फिर सागर में माघ मास के पर्यूषण पर्व संवत् 2000 में दशवीं प्रतिमा धारण की थी। संवत् 2001 से वर्णी गणेशप्रसाद जी के संघ में रहकर जबलपुर में वीर जयन्ती पर वीर प्रभू के समक्ष क्षुल्ल्क दीक्षा ली और आपका नाम क्षुल्लक क्षेमसागर रखा गया। आपने क्षुल्लक दीक्षा से ही केश लोंच करना चालू कर दिया था। वर्णी जी तो आपके चारित्र की प्रशंसा किया ही करते थे। इसके पश्चात् आपने संवत् 2012 को श्री रेशंदीगिर गजरथ के दीक्षा कल्याणक के दिन भगवान आदिनाथ की दीक्षा के समय भगवान आदिनाथ के समक्ष मुनि दीक्षा धारण की तब उसी दिन मिति माघ सुदी 15 शक्ति समाज पर निर्भर हैं उन्हीं के लाभार्थ आपने व्रत कथा कोष नामक ग्रन्थ अनेक शास्त्रों से खोज कर लिखा है, जो कि व्रत विधान करने वालों को अवश्य एक बार देखना चाहिये । इत्यादि प्रयत्न आप गृहस्थों को आदर्श बनाने के लिये सदैव करते रहते हैं । 555555555555555 65 मुनि श्री आदिसागर जी महाराज आपका जन्म बुन्देलखंड के अन्तर्गत बम्हौरी ग्राम में मिति कार्तिक सुदी 2 विक्रम संवत् 1941 में हुआ था। आपके पिताजी का नाम गोपालदास था और माता का नाम लटकारी था। आप गोला पूर्व चोसरा वंश के सुयोग्य जैन हैं। आपके आजा का नाम बहोरेलाल था। उनके यहां गोपालदास, मन्हेलाल, हलकाई, हजारीलाल और बारेलाल आदि 5 पुत्र थे। आप भी अपने प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ फफफफफफफफफफफ 251
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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