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________________ 45454545454545454545454545454545 ____ पाण्डित्य - आप एक बहुत बड़े भारी उद्भट विद्वान हैं, आपका बाल्यकाल - Fसे ही स्वाध्याय आदि पठन-पाठन की ओर सदैव लक्ष्य रहता था तथा आपने अनेक आचार्य प्रणीत उच्च कोटि के ग्रंथों का स्वाध्याय कर अपूर्व ज्ञान का सम्पादन किया है, इसलिए आपकी पाण्डित्यता से जैन तथा जैनेतर समाज भली प्रकार सबकी परिचित है, आपका युक्तिवाद तो इतना प्रबल है कि सामने वादी ठहरते नहीं हैं तथा आगमवाद के सागर ही हैं इसीलिए आपका नाम 'ज्ञानसागर जी ही है, -यथा नाम तथा गुण वाली कहावत यथार्थ चरितार्थ की है। तपो-विशेषता-तप की भी आपमें बड़ी विशेषता है, आपने हमारे दिगम्बर जैनाचार्य प्रणीत बड़े-बड़े कठिन व्रत जैसे-आचाम्ल वर्द्धन, मुक्तावली, TE कनकावली. जिनेन्द्र गुणसम्पति, सर्वतोभद्र, सिंहविक्रीडतादि अनेक तप आपने किये हैं तथा करते रहते हैं, जिनके माहात्म्य द्वारा आपकी दिव्य देह मनोहरता को प्राप्त हुई है तथा व्रतादि उग्र तप करते समय आपका शरीर बिल्कुल शिथिलता को प्राप्त नहीं होता था। वक्तृत्व शैली-वक्तृत्व शैली भी आपकी कम नहीं है, आपका व्याख्यान हजारों की जनसंख्या में धारा प्रवाही होता है, जिसको श्रवण कर अच्छे-अच्छे व्याख्याता चकित होते हैं। आपमें एक अपूर्व विशेषता यह है कि आप एक निर्भीक और स्पष्ट वक्ता हैं, वस्तु स्वरूप को आप जैसा का तैसा ही प्रतिपादन करते हैं, जिस कारण पर मतावलम्बी आपके सामने थोड़े ही समय में परास्त हो जाते हैं। । आपके वाक्य बड़े ही ललित, सुश्राव्य एवं मधुर निकलते हैं, जिनके कारण 1 जनता आपके वचनामृत श्रवण करने के लिये सदैव उत्सक और लालायित : रहती है, इसलिये आपके उपदेश का जनता पर काफी प्रभाव पड़ता है। ____चारित्र बल-इसको बताने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप एक उच्च आदर्श लिंग जो मुनि मार्ग उसकी शरण को प्राप्त हुए हैं, ऐसी अवस्था में चारित्र आपका कैसा है? उसे ज्ञानी जन स्वयं समझ गये होंगे, किन्तु आपके अपूर्व चारित्र के प्रभाव द्वारा, आपकी चिरकीर्ति इस भूमंडल में विद्युतवत् चमत्कार दिखलाती हुई आलोकित कर रही है और इसी के प्रभाव से बड़े-बड़े राजा-महाराज और बड़े-बड़े प्रतिष्ठित पुरुष आकर आपके चरणों में नत-मस्तक करते हैं और बड़े-बड़े राज्याधिकारी-गण आकर सिर झुकाते हैं, प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थH ELELEELLELEबार 210
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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