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________________ 45454545454545454545454545454545 जी की गादी थी। जहां-जहां भट्टारकी गादी होती थी, वहां-वहां शास्त्र भण्डार रहता था। आज भी वे ग्रन्थ विद्यमान होंगे। उन ग्रन्थों में विद्यानुवाद ग्रन्थ भी है। ईडर से आचार्य महाराज तारंगा जी सिद्धक्षेत्र की वंदना के लिये आये, यहां की वंदना कर सुदासना, भअवा, नवावास, दाता आदि ग्रामों में विहार । करते हुए जैनधर्म की अतीव प्रभावना कर जैनियों को विलायती शक्कर का त्याग कराया और किसी के मरने पर जो इधर छाती कूट कर रोने की प्रथा थी, जिसको सापा कहते थे, इसी भयंकर कुप्रथा को बन्द करवाया, तथा अनेकों को अभक्ष्य भक्षण का त्याग कराया। यहां से विहार कर महाराज श्री चापलपुर होते हुए दोरल पधारे। यहां पर समाज ने बहुत दान दिया जो - कि तारंगा जी सिद्धक्षेत्र में 108 मुनि शांतिसागर आत्मोन्नति भवन निर्माण के लिये जमा कराया गया। वहां से विहार कर बढ़ाली, अमोनरा पार्श्वनाथ जी आये। यहां चतुर्थ कालीन पार्श्वनाथ भगवान की मनोज्ञ प्रतिमा है, दर्शनीय - है यहां से महाराज जी कोडियाढरा आये। वहां पर एक ब्राह्मण ने उपदेश जसे पाँच उदुम्बर फल और तीन मकार का त्याग कर अष्ट मूलगुण धारण 51 किये। वहां से महाराज श्री चोटासण चीरीवाड़ होते हुए पुनः गोरेल आये। - यहां तीन दिन रहकर धर्मोपदेश दिया, जिसका जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ा। यहां से भीलोड़ा, बांकानेर होते हुए टांकादुका आये। यहां पर धार्मिक वृत्ति TE के जैनी रहते हैं, अच्छा जिनमंदिर है। इस गांव से करीब एक मील दूरी पर एक आदीश्वर भगवान का मंदिर है, जिसमें चतुर्थकालीन प्राचीन भव्य 4 प्रतिमा है, वहां के दर्शन किये, यहां से भीलोड़ा भुलेटी होते हुए कुकड़िये आये, यहां से ईडर होते हुए जादर, भद्रसेन, चित्तोड़ा सावड़ी होते हुए महाराज श्री कोटोडा आये। यहां पर भी मरण के पश्चात् छाती कूटकर करुण क्रन्दन करने व रोने की प्रथा को महाराज श्री ने बंद कराया। वहां से विहार करते हुए महाराज श्री जाम्बूडी, नया, फतहपुर होते हुए सोनासन आये। वहां पर - चार दिन रहकर धर्मोपदेश दिया, फिर यहां से कितने ही गांवों में विहार करते हुए ओरणा ठहरते हुए लाकरोड़ा आये। यहां चार दिन ठहरकर ITS धर्मोपदेश दिया। यह गांव साबरमती के तट पर है, यहां एक पुस्तकालय ना है। यहां अच्छी पुस्तकों का संग्रह है. यहां से सितवाडे होते हए अलवा आकर तीन दिन ठहरे,धर्मोपदेश दिया। यहां भी विलायती शक्कर का त्याग कराया। - 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 238 99555555555 नाना PICIFIPI-11-1-11
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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