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________________ 55555 卐 फफफफफ निश्चय में रोक नहीं सकती भाद्रपद शुक्ला 14 संवत् 1980 का आदिनाथ भगवान के मंदिर में सागवाड़ा की समाज की उपस्थिति में क्षुल्लक शांतिसागर जी महाराज ने कोपीन और चादर को उतार फेंका और जिनेन्द्र देव की साक्षी से आजीवन दिगम्बर मुनि व्रत को धारण कर लिया, अब आप पूज्य 108 श्री मुनिराज शांतिसागर बन गये। आपने सिंहवृत्ति को धारण कर उस युग में जहां उन दिनों त्यागी व व्रती के दर्शन दुर्लभ थे मुनि व्रत धारण कर मुनि धर्म का मार्ग प्रशस्त कर दिया जो कि बहुत वर्षों से रुका हुआ था। मुनि बनते ही आप गांव से आधा मील दूर एक पहाड़ी पर जाकर ध्यान मग्न होकर छः घंटे तक ध्यान लगाया। वहां सागवाड़ा के जैनी भाईयों ने आकर आपको वापिस वस्त्र धारण करने की प्रार्थना की इस पर आपने कहा कि मैंने तो वस्त्र जीवन भर के लिये त्याग किये है, मैं अब पुनः कैसे ग्रहण कर सकता हूँ क्या कोई वमन किये भोजन को पुनः भक्षण करता है? आपके दृढ़ को देख समाज के भाई शांत हो गये। इस निर्भीक घोषणा को सुनकर जैन समाज झुक गया और उन्हें कसौटी में महाराज को खरा पाया तब प्रार्थना कर महाराज को गाजे बाजे के साथ बड़ी स्वागत से तालाब के पास वाले मंदिर के दर्शन करा नगर के मंदिर में ले आये। एक दिन मुनि बनने के पश्चात् रात्रि को आपने पांच स्वप्न देखे। पहला स्वप्न एक पहाड़ पर जिन चैत्यालय देखे, दूसरे स्वप्न में खिले हुए कमलों से भरा सरोवर देखा। तीसरे स्वप्न में श्वेत बैल, चौथे स्वप्न में एक बड़ा नाहर देखा। पांचवें स्वप्न में अपने ही मस्तक पर सूखे हुये बेर का कांटों का बोझ देखा। कांटों में किसी के आग लगा देने से वह सब जल गया। पहले चार स्वप्नों का फल तो आपके महात्मा बन यश प्राप्त करने का संकेत देता है और पांचवें का फल आपको अपने मार्ग में विघ्न व कठिनाइयां आने का संकते था किन्तु सब जल जाने का आशय यह है कि आप सभी विघ्न बाधाओं को पार कर मुक्ति पथ पर 'आगे बढ़ेगे। आप धर्म ध्यान से वहां चातुर्मास का समय समापन कर रहे थे कि श्रावकों ने महाराज का नाम अमर करने व समाज में शिक्षा का प्रचार करने हेतु एक दिगम्बर जैन श्राविका श्रम खोला जिसका नाम मुनि शांतिसागर दि. जैन श्राविका श्रम रखा। इस आश्रम ने आज तक कई विधवाओं को उच्च शिक्षित बनाकर समाज में शिक्षा का भारी प्रचार किया है। इस प्रकार वर्षायोग समाप्त हो जाने पर महाराज वहां से विहार कर खड़गदा आये। अब आप 555 224 F555555! प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ SANTANNISSSSSS
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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