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________________ $145414141$i$$$451461454545 - मील की फेरी में है। जैन मंदिरों का कोट लगा हुआ है। 10-20 मंदिर तो साबुत हैं बाकी सब गिरे हुए हैं। यहां बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं है जो सभी खण्डित है। सैकड़ों में कोई एक दो प्रतिमाजी अखण्डित हैं। मुनिश्री ने आदीश्वर की एक अखण्डित प्रतिमा को देखकर जैनों से उसे वहां से ले जाकर मंदिर में विराजमान करने के लिए कहा। मुनि श्री की 51 प्रेरणा से जब पंच गण मूर्ति को उठाने लगे तो वह किंचित् भी नहीं उठी, यहां तक हिली भी नहीं। तब मुनि श्री ने यह नियम ले लिया कि जब तक प्रतिमाजी विराजमान नहीं होगी तक तक वहाँ से नहीं जावेंगे। ऐसा कह F1 कर वे आहार के पश्चात् वहीं बैठ गये सब श्रावकों के अनुरोध पर मुनिश्री ने प्रतिमा को जैसे ही स्पर्श किया कि वह उठ गये। पहिले उसका अभिषेक - किया गया और वह इतनी हल्की हो गयी कि उसे दो हाथ ऊंची वेदी पर 57 विराजमान कर दिया गया। सभी जैनों ने उसका अष्ट द्रव्य से पूजन किया चारों ओर प्रसन्नता छा गयी। देवगढ़ तो देवगढ़ ही है। वहाँ से विहार करके चन्देरी एवं फिर बढ़ी चन्देरी आये। यह भी अतिशय क्षेत्र की कहलाता है। उस समय यहां तीन मंदिर अच्छी अवस्था में थे शेष सब खण्डित एवं जीर्ण थे। बहुत सी प्रतिमाएं भी खण्डित हैं। + ललितपुर में चातुर्मास खंदार जी से मुनि श्री ललितपुर आये और चातुर्मास स्थापित किया। 1- आपके साथ में दो मुनिराज महाराज और थे। सभी का चातुर्मास निर्विघ्न । + समाप्त हुआ। मुनिश्री की बार बार प्रेरणा एवं उपदेश से मुनि श्री के नाम TE पर ही एक कन्या पाठशाला की स्थापना हुई। उस समय ललितपुर में तीन सौ घर जैनों के थे। चातुर्मास में मुनिश्री के दर्शनार्थ बाहर के बहुत से यात्रीगण + भी आये थे। शहर के दो स्वर्ण मंदिरों में स्वर्ण का कार्य बहुत सुंदर व कलात्मक TE था। पं. श्री वंशीधर जी महरोनी वाले मुनियों को पढ़ाते थे। सबका धर्म TE ध्यान अच्छा रहा। TE 卐 इसके पश्चात् मुनिश्री शान्तिसागर जी एवं मुनि श्री आनन्दसागरजी ने TE एक साथ विहार किया एवं मुनि श्री सूर्यसागर ने भी दूसरी ओर विहार कर 1 दिया। शान्तिसागर जी छाणी विरदा होते हुए मालथोन आये। यहां 5 दिन । 4 ठहरे। जैन बन्धुओं को अनेक प्रकार का त्याग कराया। बाजार के बने हुए 47 203 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थPLETELETELEदानाFELF
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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