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________________ 154545454545454545454545454545 'आचार्य सुमतिसागरजी आचार्य समतिसागरजी महाराज का गृहस्थ जीवन अत्यधिक रोमांचक - था। वि. सं. 1974 में जन्म, 1994 में विवाह और विवाह के दो सप्ताह पश्चात डाकुओं द्वारा अपहरण। डाकुओं के चंगुल से मुक्ति, निवृत्ति मार्ग में बढ़ने के लिये धर्मपत्नी की पहल एवं आचार्य विमलसागरजी महाराज को आहार देने की प्रेरणा आदि जीवन की प्रमुख घटनायें हैं। इसके पश्चात आचार्य TH विमलसागरजी महाराज भिण्ड वालों से ही ऐलक एवं मुनि दीक्षा ग्रहण करके आप निर्ग्रन्थ साधना पथ पर अग्रसर होते गये। मुनि दीक्षा के पश्चात् आपका नाम समतिसागरजी रखा गया। वर्तमान में आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हैं. और विशाल संघ के आचार्य हैं। आपके द्वारा अब तक 33 मुनि, 16 आर्यिकायें.9 ऐलक, 28 क्षल्लक, आठ क्षुल्लिकायें दीक्षित हो चुकी हैं। वर्तमान में उपाध्याय ज्ञानसागरजी महाराज, आचार्यकल्प सन्मतिसागरजी महाराज, आचार्य श्रेयांससागरजी, आचार्य अजितसागरजी, ऐलाचार्य शान्तिसागरजी, - ऐलाचार्य भरतसागरजी महाराज के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। आचार्य समतिसागरजी महाराज साधना एवं तपश्चरण की प्रतिमूर्ति हैं। जहाँ भी विहार करते हैं, अपनी साधना एवं अमृत वाणी से सबको प्रभावित कर लेते हैं। आचार्यकल्प सन्मतिसागरजी महाराज आचार्यकल्प सन्मतिसागरजी महाराज से मेरा परिचय जब वे क्षुल्लक अवस्था में थे तथा आचार्य देशभूषणजी महाराज के संघ में थे, तभी से है। जयपुर पंचकल्याणक में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। इसके पश्चात् तीन मूर्ति बोरीबली बम्बई में उनकी कार्यशैली देखने का अवसर प्राप्त हुआ। जब वे आचार्यकल्प बन गये तब सागर में उनके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपका व्यक्तित्व एवं वक्तृत्व-शैली दोनों ही प्रभावक हैं। विद्वानों के प्रति आपका सहज अनुराग है तथा स्याद्वाद सिद्वान्त शैली से प्रचार-प्रसार में व्यस्त रहते हैं। उपाध्याय ज्ञानसागरजी महाराज आचार्य सुमतिसागरजी महाराज के शिष्यों में वर्तमान में उपाध्याय ज्ञानसागरजी महाराज का स्थान विशेषतः उल्लेखनीय है। आपकी साधना, तपश्चरण, उपदेश-शैली, सभी प्रभावक हैं। आपने मुनि एवं उपाध्याय जीवन । के केवल चार वर्षों में पावन विहार से विशेषतः पश्चिमी जिन-जिन ग्रामों - प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 1825 9555555555555555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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