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________________ 5945946646994594556654545454545454545 शान्तिसागर (दक्षिण) भी संसघ विराज रहे थे। उनका पिछला चातुर्मास 卐 -1 - 1 - 1 - 1 -1 जयपुर में हुआ था। उनके संघ में साधुओं की संख्या अधिक थी। व्यावर में इन दोनों महान आचार्यों के संघ का मिलन जैन समाज के इतिहास में एक ऐतिहासिक एवं चिरस्मरणीय घटना है। दोनों आचार्यों के चातुर्मास का श्रेय सेठ चम्पालाल रामस्वरूप रानीवालों को था। वे बड़े धार्मिक प्रवृत्ति के थे। पूरे चातुर्मास भर उनके सारे परिवार ने साधुओं की अविस्मरणीय सेवा की थी। चारित्र-चक्रवर्ती आ. शान्तिसागरजी स्वयं छाणी महाराज को विशेष 7 सम्मान देते थे। सभा में दोनों आचार्यों का समान आसन सबके सामने रहता था। संघ के सब साधु परस्पर में यथायोग्य विनय नमोऽस्तु कहकर बैठते थे। इस चातुर्मास में चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी को भी छाणी महाराज की त्याग, तपस्या एवं साधना ने प्रभावित किया। इसलिये दोनों आचार्यों का एक स्थान पर वात्सल्य एवं प्रभावना पूर्वक चातुर्मास सम्पन्न हो गया। उसके बाद भी दोनों संघ अजमेर तक एक साथ रहे। व्यावर में दोनों संघ के मिलने के सम्बन्ध में जैन-मित्र में निम्न प्रकार समाचार प्रकाशित हुये : "आचार्य शन्तिसागर छाणी का संघ 11 जून सन 1933 को व्यावर हँचा। अच्छा स्वागत हुआ, आचार्य शान्तिसागरजी छाणी के सभापतित्व में आचार्यश्री शान्तिसागर जी दक्षिण की हीरक जयन्ती मनायी गयी। कई प्रभावक प्रवचन हुए। तत्पश्चात् एक धर्म धुरन्धर जी के गायन में आचार्य शान्तिसागर महाराज को साक्षात महावीर जैसा बतलाया। 45454545454545454545454545454555 -1 -1 LE सागवाड़ा चातुर्मास-सन् 1934/संवत् 1991 आचार्यश्री के प्रति बागड़ प्रदेश वालों का विशेष लगाव हो गया था। वहाँ के प्रमुख लोग आचार्यश्री के पास रहते और उनसे अपने वहाँ विहार करने का अनुरोध किया करते थे। व्यावर चातुर्मास के पश्चात् आचार्यश्री अजमेर आये। अजमेर में कुछ दिनों तक ठहरने के पश्चात् भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ होते हुए पुनः सागवाड़ा पहुँचे और वहाँ उन्होंने पुनः चातुर्मास F1 किया। सागवाड़ा आपके चातुर्मास के कारण जैन समाज का केन्द्र बन गया। राजस्थान, गुजरात, मालवा अििद से दर्शनार्थी आते और आचार्यश्री के दर्शन करके एवं प्रवचन सुनकर अत्यधिक प्रसन्नता व्यक्त करते थे। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 171 959595959999999999)
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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