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________________ 55555555555555555555555 'सब लोग एक बार फिर खुशी से झूम उठे। आदिनाथ स्वामी की विशाल' TE प्रतिमा के सम्मुख उन्होंने अपने मुनि दीक्षा लेने के भावों को दोहराया। स्वयं केशलोंच किया और भगवान से प्रार्थना की कि हे देवाधिदेव मैं आपकी सहमति से जैनेश्वरी दीक्षा लेना चाहता हूँ, आप मुझे आशीर्वाद दीजिये। णमोकार मंत्र का जाप किया और सारे वस्त्र उतारकर दिगम्बर मनि बन गये। कपड़े उतारते ही चारों ओर जयजयकार होने लगी। यह बागड़ प्रदेश के इतिहास में प्रथम अवसर था । जब किसी ने मुनि दीक्षा ली थी। जनता के लिये उत्सुकता का विषय था। आस-पास के लोग नवदीक्षित मुनि के दर्शनार्थ उमड़ पड़े। । यद्यपि आदिसागर जी अंकलीकर ने आठ-नौ वर्ष पहले संवत् 1971 में मुनि दीक्षा ले ली थी, लेकिन वे महाराष्ट्र में ही विहार कर रहे थे और उत्तर भारत में अभी उनका विहार नहीं हुआ था। सागवाड़ा-चातुर्मास-सन् 1923/संवत् 1980 मुनिदीक्षा - मुनिपद धारण करने के बाद शान्तिसागरजी का वह चातुर्मास तो दीक्षा :- नगरी सागवाड़ा में ही पूर्ण हुआ। सागवाड़ा आपके उपदेशों का केन्द्र बन गया। मुनि श्री शान्तिसागरजी महाराज ने अहिंसा धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ समाज में व्याप्त कन्या विक्रय जैसी कुरीति पर खूब प्रहार किया। अपने प्रवचनों में जब भी सामाजिक सुधार की बात आती, आप कन्या विक्रय से बचने के लिए अवश्य कहते। आपने अपने प्रवचनों में कहा कि कन्या विक्रय का पैसा लेना मांस खाने के बराबर है इसलिये समाज में ऐसी बुराई का होना घातक बीमारी है। महाराजश्री के प्रवचनों का समाज पर पूरा प्रभाव पड़ा और सारे बागड़ प्रदेश से कन्या विक्रय जैसी बुराई सदा के लिये समाप्त हो गई। बागड़ प्रदेश के जैनों की बस्ती वाले गाँवों में दाहोद, लेमड़ी, जालह, रामपुर, गलियाकोट, अरथोना, ओजनबोरी, गड़ीडडूक, परतापुर, तलवाडा, बाँसवाड़ा, खार, मारगादोल, नरवारी, गुमाण, घरियावद, परसोला, गामड़ी, सबरामेर, बराबोड़ी गाँव, छोटी कोडी गाँव, बडोरा, आसपुरा, बराड़ा, पाडवा, कुकापुर, सागवाड़ा, भीलोडी, मेतवाला, सरोदा, ओर्वरा, आंतरी, वेसीवाड़ा, ज दयोर, शाणी, नकागाँव, बाकलावाडा, छोडादर, भाणदु, जवास, भुदर, TE केसरियानाथ, धुलेब, वोरपाल के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। सागवाड़ा चातुर्मास के पश्चात् आप छोटे-छोटे गाँवों में विहार करने 162 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - - 15454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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