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________________ 55555555555555555555555 1 श्रीपार्श्वनाथ भगवान को गुरु मान करके, मस्तक व चोटी के कुछ बाल उखाड़कर, जो कपड़े पहिने थे उसमें से थोड़े से माली को दे दिये और आप 1 जनवरी सन् 1919 में ब्रह्मचारी के वस्त्र धारण कर पर्वत से नीचे आये। जो कपड़े पास में थे सब गरीबों में बाँट दिये। अपने पास सिर्फ दो धोती रक्खीं, इस तरह आपका त्यागमय जीवन प्रारम्भ हो गया। उस समय उनके पास खर्च को सिर्फ तीन रुपये रह गये थे। तब डेढ़ रुपये बड़ी कोठी से लेकर पावापुरीजी गये। पावापुरीजी की यात्रा करके राजगृही गये। राजगृही में खर्च कम पड़ गया तब चार आने मुनीमजी से लेकर वनारस का टिकट लिया। वहाँ श्री स्याद्वाद महाविद्यालय भदैनी में जाकर ठहरे। इस समय इनके पास केवल एक पैसा था। किन्तु आप इस TE कठिन आर्थिक स्थिति में भी अपनी यात्रा करने के पुण्यमयी भाव से विचलित - नहीं हुए और इसी दृढ़ निश्चय के अनुरूप सब ही तीर्थों की वन्दना करने में सफल हुए। वनारस के स्याद्वाद महाविद्यालय में आप छः दिन रहे। वहाँ विद्यालय के मंत्री ने एक घुस्सा ओढ़ने को दिया और पन्द्रह रुपये देकर बम्बई का टिकट दिलवा दिया। विश्वासो फलदायकः की नीति आपके विषय में सोलह आने चरितार्थ हो गई। आप वनारस से चलकर बम्बई पहुँचे। वहाँ सेठ माणिकचन्दजी, पानाचन्दजी, प्रेमचन्द मोतीचन्दजी के बँगले में ठहरे और तीन दिन रहे। वहाँ लल्लूभाई लखमीचन्द ने आपको आहार देकर पाँच रुपये टिकट को दिये और चम्पाबाई ने दो धोती और दो रुपये मार्ग खर्च को दिये। । वहाँ से वह अहमदाबाद आये, यहाँ उनके पास सिर्फ तीन रुपये थे, सो दो रुपये की एक पछेवड़ी ले ली। आपने पहले ही श्रीशिखरजी में नियम लिया था कि "अपने पास पाँच रुपये से अधिक न रखेंगे।" पर यात्रा खर्च की छुट रक्खी थी। वहाँ से वह ईडर आये। ईडर में पहाड़ के ऊपर श्रीमंदिरजी में जाकर दर्शन किये। ईडर से गोरेला आये, गोरेला में श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ का दर्शन किया, वहाँ से बाँकानेर आने बहनोई के ग्राम गये। यहाँ चार दिन श्रीमंदिरजी में ठहरे फिर वह और उनके सम्बन्धी पानाचन्द जी दोनों छाणी गए। सो वह तो ग्राम के बाहर श्रीमहावीर स्वामी के मंदिर में ठहर गये और पानाचन्दजी ग्राम में गये। उन्होंने ग्राम में जाकर सब श्रावकों से कहा कि "केवलदास 156 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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