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________________ 49545454545454555555555555 सचित किया गया है कि इनके ग्रन्थों का प्रकाशन अभी आरम्भ हो रहा है। ELELATE1 15145 --चारित्र-चक्रवर्ती आचार्यश्री का उत्तर भारत में विहार छाणी महाराज की शिखरजी यात्रा के अगले वर्ष सन 1928 में चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी के संघ का शिखरजी में आगमन हुआ। उस अवसर पर संघपति ने मधुबन में विशाल स्तर पर पंचकल्याणक महोत्सव कराया। इस प्रकार डेढ़-दो सौ वर्षों के उपरान्त, इन दो वर्षों के भीतर, दिगम्बर आचार्यों के दो संघों ने सम्मेदाचल की वन्दना करके TH उत्तर भारत में तीर्थ-भक्ति की गंगा ही प्रवाहित कर दी। शिखरजी की यात्रा के उपरान्त चारित्र-चक्रवर्ती आचार्यश्री के संघ ने भी प्रायः दस वर्षों तक उत्तर भारत में विहार किया। कटनी, ललितपुर, मथुरा, दिल्ली, जयपुर, व्यावर, उदयपुर, गोरला और प्रतापगढ़, ऐसे नौ चातुर्मास उन्होंने यहीं व्यतीत किये। प्रायः ये सभी चातुर्मास एक से एक बढ़कर शानदार और प्रभावक हुए। एक साथ दो-दो मुनिसंघों के विहार से उत्तर भारत के हजारों गॉव तथा सैकड़ों नगर और कस्वे पवित्र हो गये। साधु-संघों के इस देशाटन से धर्म की महती प्रभावना हुई। चारित्र ग्रहण करने के प्रति लोगों में उत्साह बढ़ा और सर्वत्र त्यागियों-व्रतियों की संख्या बढ़ती गई। हर जगह लोगों में संघ को अपने गाँव तक लाने की होड़ लगी रहती थी। उन वर्षों में शायद ही ऐसा कोई अभागा जैनी रहा होगा, जिसने आस-पास कहीं जाकर दिगम्बर मुनियों का दर्शन न किया हो, उन्हें आहार न दिया हो, या उनकी चरण-सेवा न की हो। दोनों पूज्य आचार्यों की चर्या में अनेक समानताएँ थीं। दोनों के आचरण आगमानुसारी थे। संसार, शरीर और भोगों के प्रति दोनों के मन में प्रारम्भ से ही विरक्ति के भाव थे। दोनों ने अपने आपको गृहस्थी के जाल में फँसाया ही नहीं था। यद्यपि चारित्र-चक्रवर्ती शान्तिसागरजी की बाल्यावस्था में उनका विवाह हुआ था, परन्तु कुछ ही महीनों में, ससुराल आने के पूर्व, उस बालिका की मृत्यु हो गयी थी। - व्रत और उपवास को दोनों आचार्यों ने आत्म-शुद्धि का बलवान निमित्त स्वीकार किया था। जीवन भर दिन में एक बार भोजन का नियम तो व्रती 136 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ माा 45454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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