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________________ 45454545454545454545454545494 "केवलदास" ने लाड़ प्यार से शैशव जीवन पाया। तरूण अवस्था में जब आये वीतराग ज्ञान से मोह भगाया।। प्रभु नेमिनाथ के वैराग्य दृश्य से अपना लक्ष्य बनाया। कौटुम्बिक ममता छोड़ छाणी ने अपना लक्ष्य बनाया।। श्री सम्मेद शिखर बाहुबलि यात्रा से पूजन का घर ध्यान है। प्रशम मूर्ति श्री शान्तिसागर छाणी मुनि को श्रद्धा चरण नमामि है। मातृ-पितृ की ममता जागी केवल के व्याह रचाने की पर केवलदास ने मन में सोचा सिद्धातम पद पाने को।। केशरिया नाथ में केवल आकर ब्रह्मचर्य व्रत पालन को। आदि प्रभु की शरणागत या जीवन सफल बनाने को अनन्तबार मैंने व्याह रचाये, मन में धर मुनि पद का काम है। सम्मेद शेखर प्रभु पार्श्व चरण में केशलोंच धर कर ध्यान है।। आत्म साधना के पथ पर चल केवल ने परिग्रह त्यागा। सन् उन्नीस सौ उन्नीस में क्षुल्लक दीक्षा ले आत्म बोध जागा। परम पूज्य श्री सागवाड़ा में मुनि दीक्षा ले जीवन ध्याया। अट्ठाईस मूल गुणों में तत्पर अन्तर बाहर ममकार हटाया।। उपाध्याय पद से मुनि घोषित किया निजातम ज्ञान है। विषय कषाय से निर्लिप्त होकर निरग्रन्थ मनीश्वर नाम है।। जगह-जगह चातुर्मास प्राप्त कर सिंह वृत्ति से महकाया। ग्राम-ग्राम में नगर-नगर में चलती फिरती तीर्थ काया। महावीर का सन्देश लिये जब घर घर में चमकाया। स्याद्वाद और अनेकान्त से धर्मामृत पिलवाया। और अनेकों रूढ़िवाद को अहिंसाधर्म से चमकाया। आचार्य श्री शांतिसागर ने बतलाया पथ अम्लान है। प्राणी मात्र को धर्म बताकर किया जगत कल्याण है। इस बीच सदी के मुनिवर आपने सप्त तत्व का ज्ञान कराया सत्य अहिंसा मानवता का जग को पाठ पढ़ाया देव दर्शन, रात्रि भोजन, जल गालन संदेश दिया। 卐प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 117 FIFIELETEनानानाना
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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