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________________ 199999974545454545454554745745845945 उन्नीस सौ पच्चासी में श्री आचारज पद धारा, गिरीडीह में मचा उस समय भारी जय जयकारा, दक्षिण में भी एक संत आचार्य शांतिसागर थे, दोनों बड़े उदार वास्तव में शांतिसागर थे, दोनों ही संतों को कवि काका का कोटि नमन है, श्री आचार्य शांतिसागर का वन्दन अभिनन्दन है।। परम्परा दोनों संतों की भारत भर में छाई. दो हजार एक की दसवीं जेठ वदी की आई, मुनि नेमिसागर के द्वारा हुआ समाधि मरण है, ज्ञान, ध्यान, तप, त्याग की इनने जग में धूम मचाई, नगर सागवाड़ा में समाधि लेकर सुर पदवी पाई, आचार्य शांतिसागर छाणी का वंदन अभिनन्दन है।। । झांसी हास्यकवि हजारीलाल काका छाणी के श्री शांतिसिंधु को बारंबार प्रणाम है राजस्थान प्रान्त में स्थित बागड़ देश महान है उसमें छाणी ग्राम मनोहर जिनका जन्म स्थान है। पिता भागचन्द माँ माणिक के सत केवल अभिराम है||1|| वातावरण धार्मिक घर का शिक्षा पायी ग्राम में चिंतन, मनन, अध्ययन निशदिन लगे रहे शुभ काम में उदासीन हो अल्प आयु में छोड़ दिया आराम है।।2।। बहनोई से घटना सुनकर नेमिनाथ वैराग्य की जान लिया संसार रूप को 20 104 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 15146457456457457457574545454545454575
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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