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________________ फफफफफफफ !!!! जिनवाणी के अनन्य भक्त प्रशान्तमूर्ति आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज जिनवाणी एवं सरस्वती के कीर्तिमान् स्मारक थे। जन मानस पर आचार्य श्री के उपदेशों / प्रवचनों का ऐसा जादू होने लगता था, जिससे एक / अनेक गांवों/ शहरों में पाठशालाओं / विद्यालयों/औषधालयों के निर्माण ने धूमधाम मचा दी। ये संस्थाएं आज भी महाराज श्री के कीर्ति-स्मारक बने हुए हैं। जो उनकी याद को आज भी तरो-ताजा कर देते हैं। महाराज श्री "जिनवाणी" के अनन्य भक्तों में से थे। जन-जन पर उनकी मधुर वाणी, हृदय स्पर्शी शैली की छाप नजर आती है। उनका उपदेश था कि "जिनवाणी" पर विश्वास करो। "जिनवाणी" के एक-एक शब्द द्वारा मोक्ष पा सकते हो । ॐ अक्षर को धारण करने से जीवों का कल्याण होता है । आचार्य श्री आज के युग के लिए करुणा के सागर थे। ऐसी महान् आत्मा के चरणों में मैं श्रद्धापूर्वक नत स्तक हूँ। भोपाल - (म. प्र. ) 93 पं. रतन चन्द जैन "अभय" 55555555555555555 强强强 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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