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________________ 47454545454545454545454545454545 झर झर गिरत अंगार। जो न होते संत जन तो जल जाता संसार। जब-जब संसार में अत्याचार, अनाचार में वृद्धि होती है, तब-तब T- महापुरुष पृथ्वी पर व्याप्त अत्याचार और अनाचार को समाप्त कर जन-जन में सुख और शान्ति का वातावरण निर्मित करते हैं। उत्कृष्ट चरित्र के धनी. तपोनिष्ठ, ज्ञान दिवाकर, विश्व हितैषी, मूर्तिमान् अहिंसक 108 आचार्य श्री के चरणारविन्द में हम कोटिशः वंदना करते हुए अपनी विनम्र श्रद्धाञ्जलि समर्पित कर स्वतः को कृतकृत्य मानते हैं। बताशा वाली गली रामपुरा, शीतलचन्द जैन व्याख्याता सागर श्रद्धाञ्जलि एवं शुभकामनाएं परम पूज्य आचार्यवर्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) वर्तमान युग के उग्रोग्र तपस्वी एवं दिगम्बराचार्य थे। महाराज श्री की दैनिक चर्या बहुत कठोर थी। ये मासोपवासी एवं सच्चे वीतरागी मुनिवर थे। क्रमशः आचार्य पद प्राप्त कर धर्मोपदेश के द्वारा समाज को जागृत करते थे। महाराज श्री के पावन उपदेशामृत पीकर जैनाजैन लोग अपने को धन्य मानते थे। महाराज श्री ने अपने जीवन काल में हजारों एवं लाखों जीवों का उद्धार किया। आपके तप प्रभाव से सारा उपसर्ग निवृत्त हो जाता था। आपकी तपो महिमा को देखकर लोग धन्य-धन्य की आवाज से सराहना करते थे। ऐसे महान साधु का स्मृति ग्रन्थ प्रकाशन करना अत्यन्त आवश्यक है। अतः मैं महाराज के प्रति भक्ति भावना के साथ श्रद्धाञ्जलि एवं शुभकामनाएं समर्पित करता हूँ। मद्रास मल्लिनाथ जैन शास्त्री 54454545454545454545454545454545454545454545 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 88 54545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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