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________________ 45454545454545454545454545454545 अनोखा व्यक्तित्व तरस रहे थे सभी सन्त दर्शन के लिये, तभी एक अनोखे व्यक्तित्व ने जन्म लेकर दिगम्बरत्व का दर्शन कराया, ऐसे उस प्रभावक व्यक्तित्व के दर्शनों का लाभ यद्यपि मुझे नहीं हो पाया, परन्तु जिनके नाम से ही जीवन झांकी स्वयमेव व्यक्त हो रही है, गुरु मुख से जिनकी सरलता, निस्पृहता, चारित्रिक दृढ़ता की चर्चा समय-समय पर सुना करती हूँ। ऐसे उन शान्त स्वभावी, चारित्र के धनी आचार्य श्री के चरणारविन्द में श्रद्धानवत होकर श्रद्धाञ्जलि अर्पित करती हूँ। मुंगावली कु. मंजुला मोदी LFFLFFLF45454545454545454545 श्रमण-संस्कृति के उन्नायक 20वीं शताब्दी में जब देश अज्ञान के गहन अन्धकार में डूबा हुआ था। निर्ग्रन्थ साधओं के दर्शन भी दर्लभ थे तथा श्रावक समाज में रूढियाँ एवं कुरीतियाँ पनप रही थीं, जिससे वह वास्तविक धर्माचरण से बहुत दूर जा चुका था। ऐसे समय में राजस्थान के बागड़ प्रान्त में एक सूर्य का उदय हुआ, जो आ. शान्तिसागर जी के नाम से सर्वत्र समादृत हुए। आचार्य श्री ने सारे देश में विहार करके धर्म की अपूर्व अलख जगाई। निर्ग्रन्थ परम्परा को पुनर्जीवित किया। मुनिराजों की सिंहवृत्ति होती है। इसे अपने तपस्वी जीवन से कितनी बार सिद्ध किया। वे न उपसगों से विचलित हए और न अन्य बाधाएँ उनका मार्ग रोक सकीं, ऐसे महान् आचार्य श्री को हम भुला 1E बैठे, किन्तु जागृत करने के लिए स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन करा कर समय की बहुत बड़ी मांग को पूरा किया। इस प्रकार उन्होंने सभी मानव जाति , को सही रास्ते पर चलने का आहवान किया। मैं ऐसे आचार्य श्री के चरणों में अपनी सादर श्रद्धाञ्जलि समर्पित करती हैं। ललितपुर कु. शशि रेखा 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ . ETTET
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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