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________________ 45454545454545454545454545454545 पूज्य आचार्य श्री शान्तिसागर जी छाणी के प्रति श्रद्धामिभूत होकर स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन कर रहे हैं आप सबका यह शुभ संकल्प अत्यन्त उपयोगी एवं सामयिक है। अपने हार्दिक श्रद्धा सुमन समर्पित करते हुए शत-शत वंदन करता हूँ। पू. उपाध्याय ज्ञानसागर जी की प्रेरणा सामयिक है। प्रकाश हितैषी शास्त्री सम्पादक-सन्मति संदेश दिल्ली दिगम्बरत्व का जागरण-काल और संस्मरण बीसवीं सदी के प्रथम दशक में आचार्य श्री छाणी ने पद विहार करते हुए भारत की हृदय स्थली बुन्देलखण्ड की धरा को पवित्र किया तो जैन समाज धन्य हो गया और प्रथम दि. मुद्रा के दर्शन किए। यद्यपि आचार्य छाणी 57 की शिष्य परम्परा अल्प रही पर दि. जैन संस्कृति के प्रचार-प्रसार में का उल्लेखनीय योगदान रहा। उनकी शिष्य परम्परा में उपाध्याय मुनि ज्ञानसागर जी महाराज को अपनी ज्ञान गरिमा से समाज को धर्मामृत का पान करा रहे है हैं-वे आचार्य शान्तिसागर जी (छाणी) के द्वारा किए गये उपकारों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापनार्थ एक स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन करा रहे हैं, यह बहुत उत्तम कार्य है। TE महाराज श्री छाणी के उपदेशों की कुछ झलकियाँ : सन् 1924 से 27 के बीच की बात है, कि जब आचार्य छाणी का पदार्पण शिशुपाल की राजधानी चेड़ी (चन्देरी) नगरी में हुआ तो महाराज श्री ने पहिले TE ही दिन हिंसा-अहिंसा का विश्लेषण करते हुए सभामण्डप की पहली पंक्ति 1 में बैठे हुए श्रेष्ठि लोगों को खड़ा किया और पूछा कि भाइयो! तुम्हारी कमीज, कुतों में लगे हुए ये बटन कैसे बनते हैं? महाराज जी यह हमें नहीं पता कैसे बनते हैं? किसके बनते हैं केवल चमकदार और कीमती होने के कारण हम लोग लगाते हैं, तब महाराज जी ने कहा भाइयो! ये बटन सीप के हैं, ए सीप एक जाति का कीड़ा है, जो नदियों में होता है, जब यह गर्भस्थ होता है, तभी इकट्ठा करके सीप के कीट बाहर न निकल पाएँ तभी मुलायम अवस्था में ही इन्हें चीर-काटकर बटन बना लिए जाते हैं। यह घोर पापमय हिंसाजन्य - 79 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ । 157454545454545454545454545454550
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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