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________________ 959595555555555555555555555 श्रद्धा-सुमन श्रीमद परम पूज्य प्रातः स्मरणीय त्रिकाल वन्दनीय योगीन्द्रतिलक श्रमणशिरोमणि धर्मसाम्राज्यनायक, मुनिपुंगव, समाधि, सम्राटचारित्र चक्रवर्ती आचार्य देव 108 श्री शान्तिसागर महाराज छाणी ने इस दुखम पंचम काल में मुनि बन कर आत्म कल्याण हेतु मोक्ष का मार्ग जो अवरुद्ध सा होने लगा था, उसे प्रशस्त किया तथा दिगम्बर साधु की चर्या का मार्ग प्रशस्त किया। यह जीव अनादि काल से इन्द्रिय सुख की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करता रहा, पर यथार्थ सुख तो इन्द्रियों से नहीं आत्मा से सम्बन्ध रखता है। ऐसे आत्मिक सुख की पहिचान हेतु, आपने अपने वचनामृतों से भव्य जीवों को उपदेश दे सम्बोधन किया। कुछ वर्षों पहले दिगम्बर साधु दृष्टिगोचर नहीं हो रहे थे। भूधरदास, द्यानतराय, पं. टोडरमल आदि विद्वान् जिन वाणी के माध्यम से दिगम्बर साधुओं के स्वरूप को जानते तो थे, परन्तु साक्षात दर्शन नहीं होते थे और स्तुतियों में लिखते थे कि "कबमिलि हैं साधु वनोवासी कब मिलि हैं" इसलिये दिगम्बर साधुओं के चरणरज अपने मस्तक पर लगाकर आचार्य श्री के चरणों में श्रद्धा समन समर्पित करता हैं। पं. लक्ष्मण प्रसाद जैन शास्त्री पंथवाद से परे बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण के महान तपस्वी दि. जैनाचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी छाणी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को प्रकाश में लाने की सत्प्रेरणा देने वाले परमपूज्य 108 उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज का समस्त दि. जैन समाज उपकार मानती है, क्योंकि उन्होंने समाज को आचार्य श्री का जीवन दर्शन जानने हेतु स्मृति ग्रन्थ के प्रकाशन की प्रेरणा दी। मैंने बचपन में आचार्य श्री के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त किया था-मैंने यह भी जाना था, कि आचार्य श्री शान्तिसागर जी शान्ति के सागर ही थे। एक बार दोनों आचार्य श्री मुरेना में कई दिनों तक एक साथ रहे। दोनों एक दूसरे की विनय करते थे। दक्षिण वाले आचार्य श्री की प्रसिद्धि समाज - 11 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 45454545LSLSLSL5454545450LCLETE
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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