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________________ 45454545454545454545454545454545 होनहार विरवान के होत चीकने पात परम पूज्य प्रशान्तमूर्ति आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) का स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। यह जानकार परम प्रसन्नता गया में हुई शास्त्री परिषद् के अधिवेशन से पूर्व मैं केवल एक ही आचार्य +शान्तिसागर जी के बारे में जानता था या दोनों को एक ही मानता था। TH गया अधिवेशन में जब आचार्य शान्तिसागर जी के जीवन पर विचार सुने तब पता चला कि जैसे इस जम्बूद्वीप को दो सूर्य, दो चन्द्र प्रकाशित करते हैं, उसी तरह भारत में दक्षिण उत्तर के दो शान्तिसागर आचार्य हुए हैं, दोनों ने ही भारत भर में भ्रमण किया और दि. जैन परम्परा को अक्षुण्ण बनाये 1 रखने के लिए प्रयत्न किया। मेरे हाथ में उसी अधिवेशन के समय प्रकाशित हुई आचार्य शान्तिसागर जी छाणी स्मारिका है, जिसके सम्पूर्ण लेखों का अध्ययन व अवलोकन मैंने किया और आचार्यश्री के सारे जीवन की घटनाओं एवं वैराग्य के कारण आदि के बारे में जानकारी प्राप्त की। हमारे बुन्देलखण्ड (म.प्र.) में भी आचार्य ससंघ पधारे थे, उस समय मैं तो बहुत छोटा था, लेकिन यहाँ के लोगों से उस समय की घटनाएं सुनी तो आश्चर्य चकित रह गया। उस समय मुनियों का विहार बहुत काल बाद उधर हुआ था। उस समय के लोगों ने मुनियों के दर्शन सर्वप्रथम ही किए थे। आचार्यश्री का पर्दापण सुनकर लाखों की भीड़ उनके दर्शनों को उमड़ पड़ी थी। टीकमगढ़ मध्य प्रदेश का एक छोटा सा जिला है, श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र पपौरा जी के नजदीक है या यह कहूँ कि पपौरा जी का मुख्य दरवाजा टीकमगढ़ ही है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अतः हम लोगों को मुनि संघों के दर्शनों का लाभ अनायास ही हो - जाया करता है। पपौरा जी की समतल भूमि पर गगनचुम्बी विशाल 108 51 मंदिरों के दर्शनार्थ मुनिसंघ पधारते रहते हैं। या बुन्देलखण्ड की धरा पर TE अनेक प्राचीन तीर्थ विद्यमान हैं, उनकी वंदना हेतु पधारे मुनि, आचार्यों के - दर्शनों का लाभ हमें मिलता रहता है। उसी समय की एक घटना है आचार्य शान्तिसागर छाणी भी ससंघ टीकमगढ़ पधारे थे, उस समय भारत स्वतंत्र नहीं हुआ था। टीकमगढ़ एक छोटा सा राज्य था और महाराज प्रताप सिंह । राज्य करते थे। उनके बगीचा में मुनिसंघ वृक्षों के तले ठहरा क्योंकि वहाँ 61 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थी 51461454545454545454545457
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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