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________________ 4545454545454545454545454541414 न्यायालंकार पं. वंशीधर जी को भेजा था। उत्तर प्रदेश में इन तीन मुनियों के दर्शन पहली बार ही हुए थे। इनसे पहले मुनिराजों के दर्शन कभी किसी ने नहीं किए थे। उनके दर्शनों के लिए देश के कोने-कोने से प्रतिदिन हजारों की संख्या में जैन लोग वहाँ पहुंचते थे। निम्नलिखित बातों से वहाँ की भीड़ का अनुमान लगाया जा सकता 1. एक खिड़की से टिकट देने में कठिनाई होने से स्टेशन के टिकट घर में दूसरी खिड़की बनवाई गई थी, जो वहां (ललितपुर में) अभी तक मौजूद है। 2. तीनों मुनिराज ललितपुर के दि. जैन मंदिर क्षेत्रपाल में, जो बहुत विशाल है-विराजमान थे। मंदिर के बगल में सेठ मथुरादास जी टडैया का बहुत बड़ा बगीचा था। वहीं से लोटों में पानी ले-ले कर लोग बाहर के मैदान में शौच जाते थे। हाथ और लोटा धोने-मांजने के लिए बाहर की जिस जमीन से लोग मिट्टी लेते थे, उसमें इतना बड़ा गड्ढा हो गया, जिसने छोटे तालाब का रूप ले लिया। उसमें केवल ज्येष्ठ को छोड़कर शेष ग्यारह मास तक पानी भरा रहता है। 3. बुन्देलखण्ड के तीर्थ क्षेत्रों के दर्शनों के लिए अनेक बसों की आवश्यकता पड़ी तो वहीं (ललितपुर) के मुसलमानों ने अनेक बसें खरीदीं। मुनिराजों के दर्शनों के साथ ही साथ आगुन्तकों को तीर्थ दर्शनों का भी लाभ लगातार चार माह तक होता रहा। जिन्होंने बसें खरीदी थीं, उन्हें बसों के मूल्य के साथ और भी धन मिल गया था। चौमासा आनन्दपूर्वक समाप्त हुआ। ललितपुर से तीनों मुनिराज भिन्न-भिन्न स्थानों की ओर विहार कर गये। अन्ततः आयु समाप्त होने पर आनन्दसागर जी का इन्दौर (म.प्र.) से विदेहवास हुआ था, आ. शान्तिसागर जी छाणी का सागवाड़ा (राजस्थान) से तथा आ. सूर्यसागर जी का डालमिया नगर (बिहार) से तीनों को सभक्ति नमन। जैन विश्व भारती अमृत लाल शास्त्री लाडनूं - 451 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 5441454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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