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________________ दिव्यदृष्टा परमपूज्य आचार्य शान्तिसागर जी महाराज छाणी युगचेतना के प्रतीक दिव्यदृष्टा महामुनि थे। उन्होंने अवरुद्ध मुनिपरम्परा को पुनर्प्रवर्तित करने 51 के लिए स्वतः मुनिदीक्षा लेकर स्वकल्याण के साथ-साथ परकल्याण भी किया। वे चारित्र के परिपालन में अत्यन्त दृढ़ आचार्य थे। स्मृतिग्रन्थ के प्रकाशन के अवसर पर उनके पावन चरणों में अपनी श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हूँ। - रीडर एवं अध्यक्ष - अर्थशास्त्र विभाग, डॉ. सुपार्श्व कुमार जैन दि. जैन कालेज बड़ौत (उ.प्र.) 5454545454545454545454545454545454545 सौम्यता एवं दृढ़ता की प्रतिमूर्ति वीतरागता के वैभव से मण्डित आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज TE "छाणी" ने दिगम्बर जिनधर्म की महती प्रभावना की। उन्होंने संयम को का अंगीकार कर मनुष्य जीवन को सार्थक बनाया। इस संसरण शील संसार में कुछ ही आत्माएं ऐसी होती हैं जो भौतिक जीवन के समाप्त होने पर भी TE समाप्त नहीं होती हैं। काल का आवरण उन्हें नहीं मिटा पाता। जिनकी । । स्मृतियाँ काल के आवरण से आवृत नहीं हो सकीं ऐसे आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज सम्पूर्ण मानव समाज के लिए आदर्श थे। उन्होंने अपने साहित्य एवं उपदेशों के द्वारा समाज को बहुत कुछ दिया। सम्प्रति उनके आचार-विचार की परम्परा प्रवहमान है। आचार-विचार का तादात्म्य सम्बन्ध है। आचार की शुद्धि विचारशुद्धि का कारण है और विचार शुद्धि आचार शुद्धि का कारण हैं। आचार्य श्री उभय विशुद्धियों से विशुद्ध थे। 11 आचार्य श्री का जीवन पवित्रता से ओत-प्रोत था। उनके विचार इतने प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर मणी स्मृति-ग्रन्थ -
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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