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________________ 5514151654545454545454545454545 51 पाने का और सान्निध्य में रहने का सौभाग्य मिला है, वह इन्ही महान आत्माओं 51 के त्याग, तपस्या का फल है, जिस वर्ष पूज्य शान्तिसागर जी महाराज छाणी को आचार्य पद की प्राप्ति हुई, संयोग से उसी वर्ष मैंने यह वर्तमान पर्याय पाई थी, बालक का नाम केवलदास सही रखा गया क्योंकि कालान्तर में उन्हें केवली का पद प्राप्त होना है, मेरा सौभाग्य है कि मैंने सन् 88 का और 89 में गढ़ी में हुई सभाओं में भाग लिया और उन प्राचीन मंदिरों के दर्शन किये, बांसवाड़ा और सागवाड़ा के विशाल मंदिरों के दर्शन और प्रवचन किये, इस ग्रन्थ के माध्यम से उनकी शिष्य परम्परा का ज्ञान जन-जन तक पह इस महान् ग्रन्थ के प्रेरणा स्रोत परम पूज्य उपाध्याय 108 मुनिवर - ज्ञानसागर जी के चरणों का सान्निध्य सन् 1976 से जब वे क्षु. गुण सागर जी के रूप में थे सबसे अधिक हुआ है, उन दिनों की स्मृतियाँ लिखने बैतूं TE तो एक पुस्तिका बन जायेगी, संयोग भी कैसे बनते हैं, 24 मई 90 को बुढ़ाना - में अ.भा.दि. जैन शास्त्री का निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हुआ तब भी उन्हीं के चरणों का सान्निध्य प्राप्त हुआ था, कैसी स्मृतियाँ हैं, कैसे संयोग है, इस TE 1 ग्रंथ के निमित्त को पाकर पं. पू. आ. श्री शान्ति सागर जी के श्री चरणों में - बारम्बार नमन करता हूँ। ६.७.६२ सागरमल जैन 5545454545454545454545454545454545454545455 सिद्धान्तपथानुगामी उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में जब उत्तर भारत में जैन मुनियों की परम्परा विच्छिन्न हो गयी थी, उस समय (सन 1888) पानी छानकर पीने वालों की नगरी छाणी (छान-छानी-छाणी) में केवलज्ञान के दास केवलदास नामधारी भागचन्द और माणिक बाई की आंखों के तारे एक महापुरुष का TE अविर्भाव हुआ, जिसने सन् 1923 में दीक्षित होकर न केवल मुनि परम्परा - को जीवन्त किया, अपितु समस्त जगत् को शान्ति का संदेश देते हेतु शान्तिसागर इस सार्थक नाम को प्राप्त किया। . यद्यपि सागर का जल खारा होता है और उसके पास आया प्राणी प्यासा ही रह जाता है, परन्तु शान्तिसागर एक ऐसा सागर था, जिसके पास आने प्रशणमूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 15454545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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