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________________ श्रीअनन्तनाथस्तुति । सदैव वंद्ये तवपादयुग्मे दृग्बोधवीर्यस्य पतामि हेतोः । अनन्तसौख्यस्य पदस्य हेतो ायामि गायामि नमामि भक्त्या॥६॥ अर्थ- हे देव ! आपके दोनों चरण कमल सदा वंदना करने योग्य हैं इसीलिये हे नाथ ! सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और अनंत वीर्यकी प्राप्तिके लिये तथा अनन्त सुखको देनेवाले सिद्ध पदकी प्राप्तिके लिये मैं आपके उन दोनों चरण कमलोंमें आ पडा हूं तथा उन्हीं दर्शनज्ञानचारित्रकी प्राप्तिके लिये वा सिद्धपदकी प्राप्ति के लिये मैं भक्तिपूर्वक आपका ध्यान करता हूं, आपके यशको गाता हूं और आपको नमस्कार करता हूं। देवस्तिरचा मनुजैश्चभूतैः रैश्च जीवैश्च कुटुम्बवगैः। यन्मे हि दत्तं खलु तीबदुःखं नामापि तस्य प्रतिभाति भीमम् ॥७॥ तहःखतोऽहं भ्रमितो भवाब्धौ ततश्च पारं भवितुं भवाब्धेः। त्वत्पादमूले पतितोस्मि अक्त्या यद्रोचते ते कुझ मे प्रमाणम् ॥८॥
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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