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________________ श्री विमलनाथस्तुति । श्रीविमलनाथस्तुति । ५१ लक्ष्मीमत्याः सुरम्यायाः श्रीमतः कृतवर्मणः । वंद्यो विमलनाथश्चाभवद्धि मोक्षराज्यदः || १|| अर्थ - मोक्षके राज्यको देनेवाले और सबके द्वारा वंदनीय भगवान् विमलनाथ अत्यंत मनोहर महारानी लक्ष्मीमती और अनेक प्रकारको लक्ष्मीसे सुशोभित महाराजा कृतवर्मा के पुत्र हुए थे । स्थानं भवान्धेर्विषमं हि निंद्यं त्याज्यं च भव्यैर्नरकस्य बीजम् । क्षिप्त्वा च संगं द्विविधं त्वया तनाम्ना गुणैस्त्वं विमलश्च जातः ॥२॥ अर्थ - हे भगवन् ! यह दोनों प्रकारका परिग्रह संसार रूपी समुद्रका स्थान है, विषम है, निंद्य है और भव्यजीवोंके द्वारा त्याग करने योग्य है । हे नाथ ! आपने ऐसे इन दोनों प्रकारके परिग्रहका त्याग कर दिया था इसीलिये आप नामसे और गुणसे दोनों प्रकार से विमल अर्थात् निर्मल होगये हैं । अन्वेषणार्थं च कलंकमुक्तं देवं सदाहं भ्रमितोस्मि लोके ।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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