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________________ दो शब्द . द्रष्टव्या गुरवो नित्यं प्रष्टव्याश्च हिताहितं । महेज्ययाच यष्टव्या शिष्टानामिष्टमीदृशम् || - महापुराण. भगवज्जिनसेनाचार्यने शिष्टोंके नित्यकर्तव्यको वर्णन करते हुए गुरु यजनको भी बहुत महत्व दिया है। गृहस्थोंके मुख्य कर्तव्य इज्या व दत्ति है । दोंनो कार्योंके लिये गुरु प्रधान आधार हैं । जिस पंचम कालमें साक्षात् तीर्थकर व इतर केवलियोंका एवं 1 ऋद्धिधारी तपस्वियोंका अभाव है, एवं दिव्यज्ञानि मुनियों के अभाव के साथ शास्त्रोंके अर्थको अनर्थ करनेवाले भोले लोगोंको भडकाने वालोंकी भी अधिकता है, इस विकट परिस्थितिमें पूज्यपाद जगद्वंद्य शांतिसागर महाराज सदृश महापुरुषों का उदय होना सचमुचमें भाग्यसूचक है। महर्षिके प्रसादसे आज भी आसेतु हिमाचल ( दक्षिणसे लेकर उत्तर तक ) धर्मप्रवाहका संचार हो रहा है । आजके युगमें आचार्य महाराज अलौकिक महापुरुष है । जगद्वंद्य है । संसार के दुखोंसे भयभीत प्राणियोंको तारनेके लिये अकारण बंधु है । आचार्य महाराजके दिव्य विहारसे ही आज धर्मकी प्राचीन संस्कृति यत्रतत्र दृष्टिगोचर हो रही है। आपके हृदयकी गंभीरता, अचल धीरता, व शांतिप्रियता को देखते हुए सचमुच में आपके नामका सार्थक्य समझमें आता हैं । जिन्होने 1 भक्तिपूर्वक आपका एक दफे दर्शन किया हो उनको आपकी मह
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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